Court News इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपी के पुलिस की गिरफ्त से फरार होने आधार मात्र से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जब तक कि अपराध को साबित करने के लिए अन्य सुसंगत साक्ष्य न हों। कोर्ट ने 25 साल पुराने हत्या के मामले में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा से बरी कर दिया। न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने राजवीर सिंह की याचिका पर यह निर्णय दिया है।
आगरा के डौकी थाना में राजवीर सिंह पर 5 अगस्त 1999 में अपने सगे भाई नेम सिंह की हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस ने पहले अज्ञात में प्राथमिकी दर्ज की । बाद में संदेह के आधार पर राजवीर को आरोपी बनाया गया। 16 अगस्त, 1999 को उसे गिरफ्तार कर बयान दर्ज किया गया। उसकी निशानदेही पर एक कुल्हाड़ी, उसके कमरे से खून से सना हुआ पायजामा और शर्ट बरामद की गई। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आदेश के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि आरोपी के घर से कुल्हाड़ी और कपड़ों की कथित बरामदगी को साक्ष्य अधिनियम के तहत साबित नहीं कराया है। उसे बरी किया जाना चाहिए। वहीं अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि इस मामले में, अपीलकर्ता घटनास्थल से फरार हो गया था, जो इस मामले में उसकी संलिप्तता का संकेत है और आरोपी के अपराध की ओर इशारा करता है।
कोर्ट ने कहा कि केवल आरोपी के फरार होने के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। याची संदेह का लाभ पाने का हकदार है।