सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) सहित तमाम विशेष कानूनों में भी ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत लागू होता है। शीर्ष अदालत ने प्रतिबंधित संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कथित सदस्यों को अपना मकान किराए पर देने और मदद करने के आरोपी को जमानत देते हुए यह व्यवस्था दी।
जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब जमानत देने की गुंजाइश हो तो अदालतों को किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष बहुत ही गंभीर आरोप लगा सकते हैं, लेकिन अदालतों की जिम्मेदारी है कि कानून के अनुसार मामले पर विचार करके अपना निर्णय ले।
अधिकारों का उल्लंघन होगा पीठ ने कहा कि यह कहना अनुचित होगा कि विशेष कानून के तहत आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती। यदि अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करेंगी तो यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पीएफआई के कथित सदस्यों को मदद करने के आरोपी जलालुद्दीन खान को जमानत देते हुए यह फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, जिसनेे खान को जमानत देने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जलालुद्दीन खान पर कथित तौर पर प्रधानमंत्री की बिहार यात्रा को बाधित करने की योजना बनाने का आरोप लगाया था। साथ ही उस पर प्रतिबंधित संगठन पीएफआई से जुड़ी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का भी आरोप था।