Ranchi: झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय के मार्गदर्शन में झारखंड न्यायिक अकादमी रांची में किशोर न्याय और संबंधित कानूनों पर सम्मेलन का आयोजन किया गया। आयोजित कार्यशाला में किशोर न्याय ढांचे को और बच्चों के इसको मजबूत करने संरक्षण पर सहमति बनी। प्रतिभागियों ने किशोरों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लिया। तीन तकनीकी सत्रों में आयोजित कार्यशाला में न्यायाधीशों ने अपने वास्तविक जीवन के अनुभव साझा किये और किशोर न्याय के मामलों में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की।
कार्यक्रम की शुरुआत झारखंड हाइकोर्ट की जस्टिस अनुभा रावत चौधरी के संबोधन से हुई। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता जस्टिस दीपक रोशन ने की। इसमें न्यायिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों, पर्यवेक्षक गृहों के अधीक्षकों, बाल कल्याण समितियां(सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों, किशोर न्याय बोर्ड(जेजे बोर्ड) के सदस्यों ने हिस्सा लिया। झालसा की सदस्य सचिव कुमारी रंजना अस्थाना ने बाल न्यायालयों की शक्तियों और मानव तस्करी व किशोर न्याय अधिनियम के मामलों में संवेदनशीलता की आवश्यकता बल दिया।
सुनवाई में आने वाली चुनौतियों पर की गयी चर्चा
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का अवलोकन विषय पर आयोजित सत्र में किशोर अपराध के कारणों, अधिनियम के तहत सुनवाई में आने वाली चुनौतियों और प्रारंभिक आकलन की प्रक्रिया पर चर्चा की गयी। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा भट्ट ने आयु निर्धारण के लिए अस्थि परीक्षण और एनसीपीसीआर के तहत जारी दिशा- निर्देशों पर प्रकाश डाला। महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग के सचिव मनोज कुमार ने मिशन वात्सल्य के महत्व और किशोरों के पुनर्वास और गैर-कारावास विकल्पों पर चर्चा की रजिस्ट्रार जनरल मनोज ज प्रसाद ने जेजे अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम के तहत बाल न्यायालयों की भूमिकाओं के अंतर पर चर्चा की।