Ranchi: Jharkhand News, Reservation झारखंड हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि विभागीय और सीमित परीक्षाओं से हो रही नियुक्ति में सिर्फ झारखंड के स्थायी निवासियों को ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। कैडर विभाजन के बाद झारखंड आने वाले कर्मचारी एकीकृत बिहार में नियुक्ति होने और पहले से ही काम करते रहने के आधार पर आरक्षण लेने के हकदार नहीं है। झारखंड कैडर मिलने के बाद यदि कोई आरक्षण का दावा करता है तो वह तभी मिलेगा जब वह झारखंड का ही मूल निवासी और स्थायी निवासी हो।
चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने जेपीएससी और झारखंड सरकार की अपील याचिका पर बुधवार को यह फैसला सुनाया। अदालत ने एकलपीठ के उस आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें कैडर विभाजन के बाद झारखंड आने वाले को नियुक्ति में आरक्षण देने का आदेश दिया गया था। इस संबंध में अखिलेश कुमार एवं मनोज प्रसाद ने याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि दोनों की नियुक्ति एकीकृत बिहार में हुई थी। झारखंड राज्य का गठन होने के बाद दोनों झारखंड कैडर में आ गए।
वर्ष 2010 में जेपीएससी की ओर से सरकारी सेवा के कर्मचारियों के लिए डिप्टी कलेक्टर की नियुक्ति के लिए सीमित परीक्षा का विज्ञापन जारी किया गया। इन लोगों ने भी आवेदन दिया था। लेकिन जेपीएससी ने इनके आवेदन को रद कर दिया। जेपएससी की ओर पक्ष रखते हुए अधिवक्ता संजय पिपरावाल ने अदालत को बताया कि सीमित नियुक्ति के लिए निकाले गए विज्ञापन में स्पष्ट किया गया था कि आरक्षण का लाभ लेने के लिए झारखंड के सक्षम पदाधिकारी से जारी जाति प्रमाण और आवासीय प्रमाण पत्र देना होगा।
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अखिलेश प्रसाद ने बिहार से जारी जाति प्रमाणपत्र दिया , जबकि मनोज कुमार ने झारखंड से जारीजाति प्रमाण पत्र दिया था,लेकिन आवासीय जमा नहीं किया था। जेपीएसी ने मनोज की अनुशंसा इस शर्त पर करने की सिफारिश की थी कि यदि वह आवासीय पत्र जमा कर देते हैं तो अनुशंसा की जा सकती है। लेकिन सरकार ने जेपीएससी की अनुशंसा को कहते हुए निरस्त कर दिया कि प्रोन्नति में इन्हें आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है, लेकिन नई नियुक्ति में नहीं।
सरकार और जेपीएससी के इस निर्णय को प्रार्थियों ने एकलपीठ में चुनौती दी। एकलपीठ ने सरकार और जेपीएससी के निर्णय को गलत बताते हुए कहा कि दोनों एकीकृत बिहार से नियुक्त हैं। उनका सिर्फ कैडर बदला है ऐसे में सीमित परीक्षा से होने वाली नियुक्ति वह आरक्षण के हकदार हैं। एकलपीठ के इस आदेश को जेपीएससी और झारखंड सरकार ने खंडपीठ में चुनौती दी और विज्ञापन की शर्त और सरकार के नियम का हवाला देते हुए एकलपीठ के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया।
सभी पक्षों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने 12 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। बुधवार को अदालत ने आदेश सुनाते हुए जेपीएससी और सरकार की दलील को स्वीकार करते हुए एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया।