रांचीः झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में बीआईटी मेसरा संस्थान की ओर से अपनी जमीन का दावा करते हुए नापी करने के खिलाफ रैयती लोगों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले की जांच कांके सीओ को सौंपी है।
अदालत ने कांके सीओ को निर्देश दिया है कि उक्त जमीन किसकी है, इसकी जांच कर तीन माह में उचित आदेश पारित करें। साथ ही अदालत ने इस बीच बीआईटी मेसरा की ओर से किए जा रहे जमीन नापी पर रोक लगा दी है।
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इसको लेकर बीआईटी मेसरा के पास स्थित रुदिया गांव के रैयती करमू मुंडा व 13 अन्य लोगों की ओर से झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर नापी को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि बीआइटी मेसरा ने दावा किया कि वर्ष 1964-65 में आसपास की 779 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है।
इसके लिए संस्थान ने अपनी बेवसाइट पर आम सूचना निकालते हुए जमीन नापी की कार्रवाई शुरू कर दी। सुनवाई के दौरान रैयती के अधिवक्ता निरंजन कुमार ने अदालत को बताया कि बीआईटी मेसरा की ओर से जमीन की नापी करना गलत है, क्योंकि उक्त जमीन रुदिया गांव की रैयती जमीन है।
बीआईटी मेसरा दावा भी गलत है। क्योंकि उनके पास इस जमीन का कोई कागजात भी नहीं है। सुनवाई के बाद अदालत जमीन की जांच का जिम्मा कांके सीओ को सौंपा है। अदालत ने इस मामले में तीन माह में उचित निर्णय लेने का आदेश दिया है।