रांची। झारखंड सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट की वृहद पीठ ने राज्य सरकार के नियोजन नीति को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया है। इसके साथ ही इस नीति से होने वाले अनुसूचित 13 जिलों की नियुक्ति भी रद हो गई है। अदालत ने इन जिलों में फिर से नया विज्ञापन जारी करने का आदेश दिया है। हालांकि गैर अनुसूचित जिलों की नियुक्ति जारी रहेगी। इस पर पहले से लगे स्थगन आदेश को अदालत ने वापस ले लिया।
21 अगस्त 2020 को हाईकोर्ट की वृहद कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी हाल में शत-प्रतिशत आरक्षण निर्धारित नहीं किया जा सकता है। यह संविधान के मूल भावना के खिलाफ है। ऐसे में राज्य सरकार की नियोजन नीति भी असंवैधानिक है। तीनों जजों ने एक मत से राज्य सरकार की नियोजन नीति को खारिज कर दिया।
अदातल ने राज्य सरकार के 14 जुलाई 2016 की अधिसूचना गलत है। यह क्षेत्राधिकार के बाहर का मामला है। राज्य सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। इसके तहत 13 अधिसूचित जिलों में होने वाली (विज्ञापन संख्या 21-2016) नियुक्ति में शत-प्रतिशत आरक्षण देना पूरी तरह के गलत है। यह संवैधानिक रूप से मान्य नहीं है। इसलिए इन जिलों में हुई नियुक्ति को रद किया जाता है। हालांकि अदालत ने 11 गैर जिलों में होने वाली नियुक्ति को जारी रखने का आदेश दिया है।
प्रार्थी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत नीति रद करने को कहा
इस मामले में दस जुलाई को प्रार्थी की ओर से बहस पूरी की गई थी। प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने कहा था कि 17 मार्च को अदालत ने इस मामले में यह कहते हुए सुनवाई टाल दी गई थी कि ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उस मामले में 22 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी परिस्थिति में किसी के लिए शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किया जा सकता है। संविधान के पांचवीं अनुसूची में राज्यपाल को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने कहा कि सरकार की नियोजन नीति के तहत होने वाली नियुक्ति को रद किया जाए। क्योंकि जनवरी 2020 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि इसके तहत होने वाली नियुक्ति अदालत के अंतिम आदेश से प्रभावित होगी।
21 अगस्त को हुई थी बहस पूरी, अदालत ने किया था फैसला सुरक्षित
इस मामले में 21 अगस्त को वृहद पीठ में सरकार की ओर से बहस पूरी की गई थी। इस दौरान सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्य सरकार को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार है। झारखंड की स्थितियों को देखते हुए राज्यपाल ने अपने अधिकार का प्रयोग किया और 13 जिलों को अधिसूचित घोषित करते हुए यहां के स्थानीय लोगों के उत्थान के लिए तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के सभी पद वहीं के लोगों के लिए आरक्षित किया गया।
प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने अदालत को बताया था कि राज्य सरकार की नियोजन नीति असंवैधानिक है क्योंकि किसी भी स्थिति में शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते। ऐसा करना संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का हनन है। सरकार की इस नीति से झारखंड के लोग अपने ही राज्य में नौकरी के हकदार नहीं रह गए है। नियोजन नीति के तहत 13 अधिसूचित जिलों में होने वाली नियुक्तियों के सभी पद स्थानीय के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं।
ऐसा होने से उन जिलों में नियुक्ति में शत- प्रतिशत आरक्षण हो गया है। भारतीय संविधान में शत- प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा अनुसूचित जिलों के अभ्यर्थी 11 गैर अधिसूचित जिलों में आवेदन कर सकते हैं। इसलिए सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद कर देना चाहिए।
इसको लेकर सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि राज्य के 24 में से 13 जिलों को अनुसूचित जिलों में रखा गया है। गैर अनुसूचित जिलों में पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा और देवघर शामिल हैं। सरकार की नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों के सभी पद उसी जिले के स्थानीय लोगों केलिए आरक्षित हो गए हैं। यह असंवैधानिक है।
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