राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले की एक अदालत ने पिछले साल सितंबर में धारियावाड़ में 20 वर्षीय गर्भवती महिला को निर्वस्त्र कर घुमाने के मामले में उसके पति सहित 14 पुरुषों को सात साल कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि धारियावाड़ कांड मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराध के समान ही एक जघन्य अपराध था। विशेष लोक अभियोजक मनीष नागर ने बताया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रामकन्या सोनी ने धारियावाड़ कांड में दोषी पाई गई तीन महिलाओं को पांच साल की जेल की सजा सुनाई।
न्यायमूर्ति सोनी ने कहा कि देश में महिलाओं को लक्ष्मी की तरह पूजा जाता है। प्राचीन शास्त्रत्तें में भी महिलाओं के सम्मान का उल्लेख है, लेकिन कलयुग में उनके खिलाफ हिंसा और अत्याचार जारी है।
उन्होंने कहा कि यह आरोपी द्वारा महिला के खिलाफ किया गया एक गंभीर अपराध था। इसी तरह का जघन्य अपराध मणिपुर में भी हुआ था। ऐसे अपराध महिलाओं को भावनात्मक रूप से आहत करते हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है, तभी अपराध कम होंगे।
विशेष लोक अभियोजक नागर ने बताया कि अदाल ने पीड़िता के पति कान्हा मीणा के अलावा खेतिया मीणा, मोतिया उर्फ मोतीलाल मीणा, पुनिया मीणा, केसरा उर्फ केसरीमल मीणा, सूरज मीणा, पिंटू मीणा, नाथूलाल मीणा, मानाराम उर्फ वेणिया मीणा, नेतिया मीणा, रूपा मीणा, गौतम मीणा, रामलाल मीणाा, रमेश मीणा को सात-सात साल कैद, जबकि तीन महिला दोषियों-इंद्रा मीणा, मिरकी मीणा और झुमली मीणा को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई।
पिछले साल सितंबर में एक गर्भवती महिला को निर्वस्त्र कर घुमाने का वीडियो सामने आया था। यह घटना 31 अगस्त को धारियावाड़ के निचलाकोटा गांव में हुई थी, जब आरोपियों ने पीड़िता को उस व्यक्ति के घर पर पाया, जिसके साथ उसके अवैध संबंध होने का संदेह था।
सात महीने की गर्भवती महिला को उसके पिता के घर छोड़ दिया गया। इसके बाद पीड़िता ने अपनी मां के साथ पुलिस से संपर्क किया और पति समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 509, 354 ए और 354 बी, 323, 342, 294, 36, 341, 504, 506, 120 बी, महिलाओं के अश्लील चित्रण निषेध अधिनियम की धारा 4/6 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रकाशित करने की सजा) के तहत मामला दर्ज किया।
घटना की जानकारी सामने आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पीड़िता से मुलाकात की थी और उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। घटना की जांच के लिए राज्य पुलिस ने पांच सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था।