Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट से आज छठी जेपीएससी परीक्षा के बाद बने पदाधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत इस मामले में स्टेट्स को (यथास्थिति) बनाए रखने का आदेश दिया है। इसके बाद फिलहाल उनकी नौकरी बच गई है।
अदालत ने इस मामले में एकलपीठ में याचिका दाखिल करने वालों को नोटिस जारी करते हुए प्रतिवादी बनाने को कहा है। अदालत ने 28 सितंबर तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। उसी दिन मामले में अगली सुनवाई होगी।
सुनवाई के दौरान अपीलार्थियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि छठी जेपीएससी की मेरिट लिस्ट में कोई गड़बड़ी नहीं है। जेपीएससी ने विज्ञापन में कुल 1050 अंक निर्धारित किए थे। यह अंक पेपर वन के मार्क्स को जोड़ने पर हो रहा है।
अगर पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) के क्वालिफाइंग मार्क्स को नहीं जोड़ा जाएगा, तो कुल अंक घटकर 950 हो जाएगा, क्योंकि पेपर वन के लिए 100 अंक निर्धारित थे। इसलिए जेपीएससी की ओर से मुख्य परीक्षा में पेपर वन के मार्क्स को जोड़ा जाना बिल्कुल सही है।
इस दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि सरकार ने एकलपीठ के आदेश का अनुपालन करने का निर्णय लिया है। इसलिए अपील दाखिल नहीं की गई है। इस पर अदालत ने कहा कि एकलपीठ में सरकार ने जेपीएससी के पक्ष में बहस किया। अब अपना स्टैंड बदल रहे हैं।
इस मामले में प्रतिवादियों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, विकास कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुमारी सुगंधा ने पक्ष रखा। जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह ने पक्ष रखा। इस दौरान जेपीएससी ने सरकार के पक्ष से सहमति जताई
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शिशिर तिग्गा सहित अन्य की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि जेपीएससी की ओर जारी मेरिट लिस्ट में कोई गड़बड़ी नहीं है। पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) के क्वालिफाइंग मार्क्स भी कुल मार्क्स में जोड़ा जाना भी उचित है। ऐसे में एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाई जाए।
हालांकि इस मामले में पिछले दिनों जेपीएससी ने भी एकल पीठ के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन फिर बाद में जेपीएससी ने उक्त याचिका को वापस लेने का लिए आवेदन दिया है। आवेदन में कहा गया है कि काफी विवाद होने की वजह से ऐसा निर्णय लिया गया है।
दरअसल, एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जेपीएससी विज्ञापन जारी होने के बाद उसमें बदलाव नहीं कर सकती है और पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) के क्वालिफाइंग मार्क्स को कुल मार्क्स में जोड़ा जाना विज्ञापन की शर्तों के अनुरूप नहीं है।
इसलिए अदालत मेरिट लिस्ट को निरस्त करते हुए आदेश के आठ सप्ताह बाद संशोधित मेरिट लिस्ट जारी किया जाए। अदालत ने यह भी कहा है कि इसके लिए जिम्मेदारी जेपीएससी के पदाधिकारियों को पर सरकार कड़ी कार्रवाई करे।
अदालत ने कहा इस तरह के परीक्षा में काफी मेहनत के बाद अभ्यर्थी शामिल होते हैं। विवादित होने से उनका मनोबल टूटता है। इसलिए सरकार इनक पर कार्रवाई करे। हालांकि सरकार भी जेपीएससी के पदाधिकारियों पर कार्रवाई को लेकर संजीदा दिख रही है।