सुप्रीम कोर्ट ने मनी लांड्रिंग के एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतों को मशीन की तरह से और बिना कोई ठोस कारण बताए जमानत आदेश पर रोक लगाने से बचना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही यह भी रेखांकित किया कि केवल दुर्लभ और अपवादात्मक मामलों में ही आरोपी को राहत देने से इनकार किया जाना चाहिए। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अदालतें किसी भी आरोपी की स्वतंत्रता को मनमर्जी से सीमित नहीं कर सकतीं।
पीठ ने कहा, ‘अदालतों को केवल दुर्लभ और अपवादात्मक मामलों में ही जमानत आदेश पर रोक लगानी चाहिए, जैसे कि जब कोई व्यक्ति आतंकी मामलों में शामिल है, जहां कोर्ट का आदेश विकृत हो या जिसे देने में कानून के प्रावधानों को दरकिनार किया गया हो। आप इस तरह से स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। यह विनाशकारी होगा। अगर हम इस तरह से रोक लगाते हैं, तो यह बिल्कुल गलत होगा और ऐसे में अनुच्छेद 21 कहां जाएगा?’
शीर्ष अदालत ने मनी लांड्रिंग मामले में आरोपी परविंदर सिंह खुराना की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं। खुराना ने ट्रायल कोर्ट से मिली जमानत पर अस्थायी रोक लगाने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा था कि अदालतों को जमानत आदेश पर मनमाने तरीके से रोक नहीं लगानी चाहिए।
हाई कोर्ट के आदेश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि यह निर्देश चौंकाने वाला है। जस्टिस ओका ने टिप्पणी की थी, ‘जब तक वह आतंकवादी नहीं है, तब तक उसे रोकने का क्या कारण है?’
खुराना को पिछले साल 17 जून को PMLA मामले में ट्रायल कोर्ट ने जमानत दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद उन्होंने शीर्ष अदालत में अपील दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और खुराना की जमानत बहाल कर दी।