सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि राज्यों की बार काउंसिल नए वकीलों से ‘अधिवक्ता अधिनियम-1961’ में तय राशि से अधिक पंजीकरण शुल्क नहीं ले सकते। इस फैसले से हर साल वकालत के पेशे में आने वाले देशभर के लगभग 70 से 80 हजार युवा वकीलों को लाभ होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्यों की बार काउंसिल सामान्य वर्ग के वकीलों से 750 रुपये और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वकीलों से 125 रुपये से अधिक का पंजीकरण शुल्क नहीं ले सकते। अलग-अलग राज्यों की बार काउंसिल द्वारा नए वकीलों से पंजीकरण व अन्य विविध मदों में 42 हजार रुपये तक पंजीकरण शुल्क लेते हैं।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कानून में तय रकम से अधिक लेना हाशिए पर खड़े और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के खिलाफ ‘प्रणालीगत भेदभाव’ को बढ़ावा देता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों की बार काउंसिल (एसबीसी) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) संसद द्वारा निर्धारित राजकोषीय नीति में बदलाव या संशोधन नहीं कर सकतीं।
बढ़े हुए विविध शुल्क भी नहीं ले सकते पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि राज्यों की बार काउंसिल विविध शुल्क, स्टाम्प ड्यूटी या अन्य शुल्कों के तहत कानून में तय राशि से अधिक नहीं ले सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने गौरव कुमार सहित कई वकीलों की ओर से दाखिल 10 याचिकाओं पर यह फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 22 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था।