सुप्रीम कोर्ट ने धनशोधन मामलों की जांच करने वाले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी को अपने मुकदमों के अभियोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि पिछले 10 वर्षों में ईडी ने धनशोधन के अपराध में पांच हजार मामले दर्ज किए, जबकि सजा सिर्फ 40 में हो पाई।
जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने छत्तीसगढ़ के कारोबारी सुनील कुमार अग्रवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। अग्रवाल को ईडी ने कोयला परिवहन से जुड़े धन शोधन के मामले में गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने अग्रवाल को 17 मई को दी गई अंतरिम जमानत की पुष्टि करते हुए उन्हें नियमित जमानत दे दी।
अदालत ने पाया कि आरोपी के खिलाफ कोई अनुसूचित अपराध नहीं बनता है। जस्टिस भुइयां ने धनशोधन निवारण अधिनियम के तहत मामलों में कम सजा पर सवाल उठाया और चिंता जताई। उन्होंने छह अगस्त को लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के बयान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था, 10 सालों में पीएमएलए के तहत पांच मामले दर्ज हुए और 40 में आरोपियों को दोषी ठहराया जा सका। अदालत ने ईडी से कहा, जिन मामलों में आप मानते हैं कि मामला बनता है तो उन्हें अदालत में भी साबित करने की जरूरत है। इस मामले में सिर्फ कुछ बयान, हलफनामे हैं। इस तरह की मौखिक साक्ष्य का क्या भरोसा।