Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका ने जजों से कहा है कि वह सोशल मीडिया के प्रभाव और उसके परिणामों की चिंता किए बिना अपना काम करें। जजों का प्राथमिक कर्तवय न्याय देना है और इस पवित्र जिम्मेवारी को बनाए रखना है। वह शनिवार को ज्यूडिशियल एकेडमी धुर्वा में न्यायिक नैतिकता: न्यायालय के अंदर और बाहर आचरण विषयक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। युवा न्यायाधीशों को प्रोत्साहित करते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि वह उच्च न्यायालयों से प्रभावित हुए बिना अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पर ध्यान केंद्रित करें। कामकाजी परिस्थितियों में सुधार के साथ न्यायिक अधिकारियों से उच्च गुणवत्ता वाले निर्णय देने की उम्मीद की जाती है। न्यायपालिका के चेहरे के रूप में उन्हें संस्था की छवि को बरकरार रखना होगा जो उच्च न्यायालयों की प्रतिष्ठा से अधिक महत्वपूर्ण है।
प्रभावी केस प्रबंधन पर जोर देते हुए जस्टिस ओका ने सुझाव दिया कि न्यायाधीश मामले की तारीखों पर नजर रखने के लिए एक डायरी रखें। समय पर समाधान सुनिश्चित करते हुए लंबे समय से लंबित मामलों को कुशलतापूर्वक निपटाएं। अनावश्यक देरी को कम करने, वैध कारणों के बिना बार-बार गवाह सम्मन से बचने और मामले के विवरण को पहले से पढ़कर पूरी तैयारी के महत्व पर भी जोर दिया। विभिन्न विषयों पर सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसलों के बारे में अपडेट रहने की भी सलाह उन्होंने दी।
अदालत कक्ष के बाहर आचरण पर जस्टिस ओका ने कहा कि सार्वजनिक रूप से एक न्यायाधीश का आचरण एक सामान्य नागरिक से भी अधिक गरिमामय और अनुकरणीय होना चाहिए। अदालत कक्ष के अंदर आचरण के पर उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के लिए आवश्यक गुणों के रूप में समय की पाबंदी और अनुशासन होना चाहिए। उन्होंने न्यायाधीशों को सलाह दी कि वे अदालती सत्र से कम से कम आधे घंटे पहले पहुंचे और गरिमामय उपस्थिति बनाए रखें।
75 साल में न्यायपालिका ने दो गलती कीः
जस्टिस ओका ने सेमिनार में कहा कि न्यायपालिका ने 75 वर्षों में दो गलतियां की हैं। पहला, ट्रायल और अपीलीय अदालतों की उपेक्षा करना और उन्हें निचली अदालत या अधीनस्थ अदालतें कहना। दूसरा न्यायपालिका ने अनायास ही जनता का भरोसा मानकर अपना कंधा थपथपा लिया।
इच्छाओं व आकांक्षाओं से अलग रहे न्यायाधीश: जस्टिस एसएन प्रसाद
हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि न्यायाधीशों के लिए समय की पाबंदी, ईमानदारी, और निष्पक्षता जरूरी है। न्यायाधीशों को इच्छाओं और आकांक्षाओं से पूरी तरह अलग रहने की बात कही। उन्होंने कहा यह सेमिनार न्यायिक नैतिकता के लिए काफी उपयोगी साबित होगा। उन्होंने कहा कि आयोजन का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों के बीच न्यायिक नैतिकता की गहरी समझ को बढ़ावा देना, न्यायपालिका में ईमानदारी और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देना है। समारोह में हाईकोर्ट के सभी जज, न्यायिक पदाधिकारी शामिल हुए।