Ranchi: MNREGA scam झारखंड हाईकोर्ट ने खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले के आरोपी तत्कालीन जूनियर अभियंता राम बिनोद सिन्हा का बयान प्रवर्तन निदेशालय और एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) से मांगा है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने दोनों जांच एजेंसियों को सीलबंद रिपोर्ट 21 अक्टूबर तक पेश करने का निर्देश दिया है।
अरूण कुमार दुबे की जनहित याचिका पर सुनवाई करते अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इस मामले में जो भी दोषी होंगे सभी पर कार्रवाई होनी चाहिए। वादी अरूण कुमार दुबे की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले की जांच सही तरीके से नहीं की गयी है।
इस मामले में एक जूनियर इंजीनियर राम बिनोद सिन्हा पर 16 प्राथमिकी दर्ज की गई है और वह अभी जेल में है। एक भी मामले में किसी भी बड़े अधिकारी को दोषी नहीं पाया गया है। सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि मनरेगा की योजनाओं के पालन कराने और योजनाओं की मॉनिटरिंग करने का अधिकार उपायुक्त को है।
इसे भी पढ़ेंः Compensation For Covid Deaths: कोरोना से मौत पर मुआवजे देने से सुप्रीम कोर्ट खुश, कहा- विपरीत हालात में भारत ने किया बेहतर काम
उपायुक्त ही इसके लिए राशि भी जारी करते हैं। लेकिन जांच एजेंसियों ने उनसे पूछताछ भी नहीं की है। प्रार्थी की ओर से पक्ष रखते हुए अधिवक्ता राजीव कुमार ने गड़बड़ी के मामले में तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच करने का आग्रह किया।अदालत को बताया कि मनरेगा योजनाओं की गड़बड़ी के लिए खूंटी जिले में 16 प्राथमिकी दर्ज की गई है।
लेकिन इसमें एक में भी तत्कालीन उपायुक्त को आरोपी नहीं बनाया गया है, जबकि मनरेगा एक्ट के तहत उपायुक्त कार्यक्रम समन्वयक होते हैं। उपायुक्त को योजनाओं के कार्यान्वयन और उसे पूरा होने का प्रमाणपत्र लेने के बाद ही राशि का भुगतान करना होता है, लेकिन योजनाएं अधूरी रहने के दौरान ही उपायुक्त ने इंजीनियरों को राशि निर्गत कर दी।
योजनाएं पूरी हुए बिना ही पूरा भुगतान कर दिया गया। अदालत को बताया गया कि किसी भी मामले में उपायुक्त को आरोपी नहीं बनाया गया। इस मामले के आरोपी इंजीनियर के खिलाफ ईडी जांच भी हुई है। ईडी ने भी इसमें अपनी फाइंडिंग दी है, लेकिन सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। इस तरह की अनियमितताओं के मामले में सरकार छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई तो करती है, लेकिन जिम्मेवार अधिकारियों पर जांच नहीं होती।