झारखंड हाई कोर्ट ने ट्रेन से हुए हादसे में जान गंवाने के एक मामले में महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने कहा कि भले ही रेलवे यात्री की यात्रा समाप्त हो गई हो, लेकिन इस दौरान स्टेशन पर कोई हादसा होता है, तो वह मुआवजे का हकदार है।
झारखंड हाई कोर्ट गढ़वा स्टेशन पर रात 11.30 बजे रेलवे ट्रैक पार करते हुए एक महिला की मौत मामले में उक्त फैसला सुनाया है। इसको लेकर महिला के पति सुरेश राम ने रेलवे न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी। महिला की मौत गढ़वा स्टेशन पर वर्ष 2018 में हुई थी।
रेलवे न्यायाधिकरण ने महिला को वास्तविक यात्री नहीं मानते हुए मुआवजा के दावे को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि फुट ओवरब्रिज और लाइट की सुविधा के अभाव में रेलवे ट्रैक पार करने की कोशिश करने के दौरान जान गंवाने वाली महिला के परिवार को आठ लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
ट्रेन हादसे पर मुआवजा देने से न्यायाधिकरण का इन्कार
रेलवे न्यायाधिकरण ने मृतका के परिजनों को मुआवजा देने से इन्कार कर दिया था। जिसके बाद मृतका के परिजनों ने हाई कोर्ट याचिका दाखिल किया था। अदालत ने रेलवे न्यायाधिकरण के आदेश को दरकिनार करते हुए पीड़ित परिवार को ब्याज के साथ मुआवजा देने का आदेश दिया है।
रेलवे न्यायाधिकरण ने यह कहते हुए मुआवजा देने से इन्कार कर किया था कि मृतक की मृत्यु रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 123 के तहत परिभाषित “अप्रिय घटना” में नहीं हुई थी। जिसपर प्रार्थी के अधिवक्ता चैताली चटर्जी सिन्हा ने कहा कि यात्रियों को एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए रेलवे स्टेशन के पास कोई फुट ओवरब्रिज नहीं बनाया गया और न ही लाइट की व्यवस्था थी।
यात्रा समाप्त होने पर भी महिला वास्तविक यात्री
इसके अलावा महिला ट्रेन से यात्रा करते हुए गढ़वा पहुंची और उसने अपनी यात्रा समाप्त कर अपने घर जाने वाली थी। इसी बीच हादसा हो गया है। ऐसे में उसे वास्तविक यात्रा नहीं माना उचित नहीं है। ऐसे में रेलवे न्यायाधिकरण के आदेश को निरस्त करते हुए पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जाए।
यह घटना तब हुई जब मृतिका अपनी यात्रा खत्म करने के बाद ट्रेन से उतर कर अंधेरे में अपने घर जाने के लिए ट्रैक पार कर रही थी। इसी दौरान वह दूसरी ट्रेन की चपेट में आ गई और उसकी मृत्यु हो गई। अदालत ने पाया कि जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि मौत का कारण रेलवे दुर्घटना थी।
सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मृतिका वास्तविक यात्री थी, जिसकी अप्रिय घटना के कारण मृत्यु हो गई और अपीलकर्ता मृतक के आश्रित होने के कारण रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 124 (ए) के तहत आवेदन दाखिल करने की तिथि यानी 13 मार्च 2018 से मुआवज़ा राशि प्राप्त होने तक 6 प्रतिश ब्याज के साथ आठ लाख रुपये की के मुआवजे के हकदार हैं।
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