Ranchi: Jharkhand High Court decision झारखंड हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य विभाजन के समय निर्वाचन सेवा में आए पदाधिकारी भी अब झारखंड सेवा प्रशासनिक सेवा के अधिकारी माने जाएंगे। अदालत ने राज्य सरकार के विलय की उस शर्त को खारिज कर दिया है, जिसमें विभाजन के समय से निर्वाचन सेवा के जरिए झारखंड में योगदान देने वाले को राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी नहीं माना गया है।
झारखंड सरकार की शर्त में कहा गया है कि यह पद तभी प्रशासनिक सेवा का माना जाएगा, जब विभाजन के समय से कार्यरत निर्वाचन सेवा के पदाधिकारी सेवानिवृत्त हो जाएंगे। राज्य सरकार की इस शर्त को झारखंड हाई कोर्ट की एकलपीठ ने भी मान लिया था। लेकिन चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने सरकार और एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया।
अब सभी वर्ष 2008 से ही प्रशासनिक सेवा के अधिकारी माने जाएंगे। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि जब राज्य सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के मूल कोटा को बढ़ाते हुए इसमें निर्वाचन सेवा के 40 पदों का भी विलय कर लिया गया तो विभाजन के समय से काम करने वाले निर्वाचन पदाधिकारियों को प्रशासनिक सेवा का पदाधिकारी माना जाएगा। इस मामले में अदालत आदेश सोमवार को वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। इस संबंध में गायत्री देवी सहित अन्य की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।
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सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता राजेश कुमार ने अदालत को बताया कि राज्य बनने के बाद निर्वाचन सेवा के 40 पद झारखंड के हिस्से में आए थे। उस समय इस पर केवल 12 लोग ही कार्यरत थे। वर्ष 2008 में राज्य सरकार ने निर्वाचन सेवा को राज्य प्रशासनिक सेवा में विलय कर दिया। शर्त लगाई गई कि वर्तमान में कार्यरत लोगों को प्रशासनिक सेवा का नहीं माना जाएगा।
जब-जब यह पद खाली होता जाएगा तो इसे प्रशासनिक सेवा का पद मानते हुए इस पर नियुक्ति की जाएगी। जब राज्य सरकार ने 40 पदों को प्रशासनिक सेवा का मान लिया तो इस पर कार्यरत लोगों को भी प्रशासनिक सेवा का अधिकारी माना जाना चाहिए। वर्ष 2015 के समय राज्य प्रशासनिक सेवा के 695 पद थे। इसमें 40 पद को जोड़ते हुए कुल 735 हो गए थे। ऐसे में प्रार्थियों को प्रशासनिक सेवा का लाभ मिलना चाहिए।
लेकिन राज्य सरकार इनको अभी भी प्रशासनिक सेवा का पदाधिकारी नहीं मानती है। जबकि एकल पीठ ने इनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन्हें अवर निर्वाचन पदाधिकारी से उप निर्वाचन पदाधिकारी की सेवा में प्रोन्नति दे दी गई है। इसके खिलाफ खंडपीठ में अपील दाखिल की गई थी।
जिस पर अदालत ने अपना फैसला सुनाया है।