Ranchi: Human Rights Day झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन ने कहा कि महिला और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और समाज में किसी एक का महत्व दूसरे से ज्यादा नहीं है। महिला और पुरुष में हमेशा से समानता रही है। इसलिए भगवान शिव का एक रूप है अर्द्धनारीश्वर। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पत्नी को अर्द्धांगिनी कहते हैं।लेकिन कुछ दशक पहले तक विधवा महिला को पति की संपत्ति से वंचित कर दिया जाता था। ऐसी ही स्थिति धार्मिक मामलों में महिलाओं की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें इसका अधिकार मिला है। लेकिन पुरुष प्रधान समाज इसे अभी तक स्वीकार नहीं कर पाया है। हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।
उम्मीद है इसमें जल्द बदलाव होगा। चीफ जस्टिस नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च लॉ के सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सबाल्टर्न स्टडीज, झालसा, महिला अध्ययन केंद्र, पटना विश्वविद्यालय की ओर से मानवाधिकार दिवस पर 21वीं सदी में महिलाओं के धार्मिक अधिकार व मानव अधिकार विषय पर आयोजित सेमिनार में लोगों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आधी आबादी को सशक्त करने से ही देश की आधी आबादी स्वतः सशक्त हो जाएगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के संदर्भ में होने वाले मानवाधिकार हनन का गंभीर रूप से जल्द से जल्द निष्पादन हो।
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जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने कहा कि किसी भी समाज के प्रगति तब तक संभव नहीं है, जब तक वहां की महिलाओं का विकास नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संवैधानिक मूल्य तब तक कोरे कागज की तरह हैं, जब तक कि उन्हें समाज जिम्मेदारी के साथ नहीं अपनाता है। इस दौरान जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने कहा कि महिलाओं को सशक्त करने की जरूरत नहीं है। महिलाएं अबला नहीं, बल्कि अब सक्षम है और अपने अधिकारों को हक से लेने के आगे आएं।
परिवार में महिलाओं को क्या करने और क्या नहीं करने की बात कही जाती है। इसमें बदलाव लाना होगा तभी समाज विकसित होगा। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह, जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, महाधिवक्ता राजीव रंजन, डॉ सुनीता राय, डॉ अलका चावला, डॉ केशव, डॉ सुबीर कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे। इस दौरान चीफ जस्टिस ने महिलाओं के धार्मिक अधिकार पर विश्वविद्यालय की ओर से लिखी गई पुस्तक का विमोचन भी किया।