सेना के पूर्व जवान ने दिल्ली पुलिस में भर्ती होने के लिए छह साल कानूनी लड़ाई लड़ी। उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को सेना के पूर्व जवान की पुलिस में भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सी हरीशंकर और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने इस मामले में दिल्ली पुलिस की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें पूर्व सेनाकर्मी की नियुक्ति के लिए आरक्षण 0.12 फीसद अंक कम पड़ रहे थे। उच्च न्यायालय ने पूर्व सैन्यकर्मी महेश सिंह के अधिवक्ता अनिल सिंह के इस तर्क को उचित माना कि जब भी कोई संख्या 0.5 से ऊपर है तो वह एक के बराबर मानी जाती है।
पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस की भी माने तो जिस कांस्टेबल की पोस्ट के लिए पूर्व सैन्यकर्मी ने आरक्षण मांगा है वह महज 0.88 फीसदी है। ऐसे में यह संख्या 0.5 से ऊपर है। मलतब साफ है कि इस संख्या को एक माना जा सकता है। ऐसे में आरक्षण के आधार पर पूर्व सैन्यकर्मी की भर्ती की मांग जायज है।
त्रिपुरा से विशेष अभियान के तहत भर्ती निकाली थी दिल्ली के उपराज्यपाल के आदेश पर त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए विशेष भर्ती अभियान के तहत अस्थायी कांस्टेबल (कार्यकारी) के पद पर नियुक्ति के लिए दिल्ली पुलिस ने 2018 में एक विज्ञापन जारी कर आवेदन आमंत्रित किए थे। इसके तहत दिल्ली पुलिस में विभिन्न पदों पर 44 नियुक्तियां होनी थीं। इनमें विभिन्न वर्गों का आरक्षण शामिल था।
इससे पहले केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने भी उम्मीदवार की नियुक्ति के अधिकार को जायज ठहराया था। दिल्ली पुलिस ने कैट के इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की याचिका को खारिज कर दिया और उम्मीदवार की नियुक्ति के आदेश दिए हैं।