Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस केपी देव की पीठ ने एक मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव को अवमानना का नोटिस जारी किया है। अदालत ने तीनों अधिकारियों से पूछा है कि क्यों नहीं आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरु की जाए। अलग-अलग शपथ पत्र के माध्यम से तीनों अधिकारियों के अपना जवाब कोर्ट में पेश करना है और ऑनलाइन हाजिर भी होना है। इस मामले में अगली सुनवाई 13 अप्रैल को निर्धारित की गई है।
धनबाद से जुड़े एक मामले में चिकित्सक डा स्वपन कुमार सरक ने गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट दी थी। इस मामले में अदालत ने मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव को ऑनलाइन हाजिर होने का आदेश दिया था। लेकिन तीनों अधिकारी बिना उचित कारण के अदालत में पेश नहीं हुए। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जतायी और इनके खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया है। अदालत ने इस मामले में नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) की ओर से भी स्पष्ट शपथ पत्र दाखिल नहीं करने पर नाराजगी जताई।
एनएमसी ओर से पेश हुए वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार वअपराजिता भारद्वाज ने अदालत से कहा कि इस मामले में उनके खिलाफ अवमानना का मामला नहीं बनता है। इस पर कोर्ट ने एनएमसी को इस मामले में स्पष्ट शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत धनबाद के बरवड्डा थाना क्षेत्र के रहने वाले बशीर अंसारी की अग्रिम जमानत पर सुनवाई चल रही है। इन पर अपनी बहू अंजू बानो को वर्ष 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।
सुनवाई के क्रम में अदालत को पता चला कि ससुराल पक्ष का दावा है कि शादी से पहले ही अंजू बानो गर्भवती थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र नहीं है। ससुराल पक्ष की ओर से गर्भवती होने से संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश किए जाने के बाद कोर्ट ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जांच के लिए पीएमसीएच के अधीक्षक को एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया। उक्त कमेटी में डॉ स्वपन कुमार सरक को भी रखा गया, जिन पर गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने का आरोप है।
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इस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई और नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) को प्रतिवादी बनाते हुए मामले में संज्ञान लेने का निर्देश दिया था। एनएमसी की ओर से अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि एनएमसी अपीलीय प्राधिकार है। ऐसे में यह मामला पहले झारखंड मेडिकल काउंसिल द्वारा ही देखा जाना चाहिए। इसके बाद अदालत ने झारखंड मेडिकल काउंसिल को प्रतिवादी बनाया और राज्य के मुख्य सचिव को अदालत का सहयोग करने का आग्रह किया।
इस दौरान अदालत ने मुख्य सचिव से पूछा था कि जिस तरह के पोस्टमार्टम रिपोर्ट गलत बनी है। ऐसे में क्या इस बात की संभावना है कि अब से होने वाले पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी कराई जा सके। साथ ही आरोपित चिकित्सक स्वपन कुमार सरक के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की जा रही है। सुनवाई के दौरान झारखंड मेडिकल काउंसिल की ओर से बताया गया कि जिस चिकित्सक स्वपन कुमार सरक की गलती के वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट गलत बनी है। वह उनके यहां रजिस्टर्ड नहीं है।
इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इस पर अदालत ने कहा कि इससे प्रतीत होता है कि फर्जी चिकित्सक भी राज्य में सरकारी नौकरी कर सकता है और उसकी जांच करने वाला कोई नहीं है। इसके बाद अदालत ने मुख्य सचिव को स्वयं इस मामले में शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश देते हुए कहा कि वे बताएं कि राज्य में सरकारी और गैर सरकारी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सकों के लाइसेंस और क्रेडेंशियल की जांच के लिए कोई कानूनी प्रावधान है या नहीं।
ऐसे लोगों को कैसे चिन्हित किया जाएगा। अदालत ने अपने आदेश में आशंका जताई है कि गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनने के आधार पर निचली अदालतों से अभियुक्त को सजा मिल सकती है। इसको रोकने के लिए सरकार को गंभीर होना होगा। ताकि चिकित्सकीय व्यवस्था सुदृढ़ हो सके और अदालत इसके लिए कृतसंकल्पित है। इस मामले के बाद अब अभियोजन निदेशक की नियुक्ति पर भी सवाल उठ रहे हैं। वर्ष 2015 में सरकार ने अभियोजन निदेशक की नियुक्ति की गई। लेकिन वे किस तरह के ऐसे मामलों की निगरानी कर रहे है, जब गलत जांच व पोस्टमार्टम रिपोर्ट निचली अदालतों में दाखिल की जा रही हैं।