Ranchi: सीबीआई (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा है कि एजेंसी की जांच के लिए विभिन्न राज्य सरकारों के सामान्य सहमति वापस लिए जाने का फैसला न सिर्फ जांच के लिए बल्कि मामलों के अभियोजन के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो रहा है।
सीबीआई निदेशक एसके जायसवाल ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि आठ राज्य सरकारों- बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मिजोरम ने सामान्य सहमति वापस ली है।
उन्होंने कहा कि अब हर मामले के आधार पर विशेष सहमति प्राप्त करने में काफी समय लगता है और कई बार समयबद्ध एवं त्वरित जांच के लिए हानिकारक भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि इन राज्य सरकारों को भेजे गए 150 अनुरोधों में से सिर्फ 18 फीसद को ही मंजूरी प्रदान की गई है और लंबित मामलों में ज्यादातर बैंक धोखाधड़ी से जुड़े हुए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सीबीआई निदेशक की नियुक्ति का सामान्य आदेश जारी नहीं कर सकता। गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) कामन काज ने दलील दी कि सीबीआई निदेशक का कार्यकाल खत्म होने के बाद उत्तराधिकारी की नियुक्ति तक तदर्थ प्रबंधन नहीं होना चाहिए बल्कि वर्तमान निदेशक को ही बनाए रखना चाहिए।
इस पर जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र में संदिग्ध आइएस आपरेटिव की गिरफ्तारी के मामले में एनआइए मुंबई के जांच संभालने तक एटीएस नांदेड़ को अपनी जांच करने से नहीं रोका गया था।
शीर्ष अदालत 2016 में एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए गए नासेर बिन अबु बक्र यफई की अपील पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एनआइए मुंबई द्वारा कमान संभालने से पहले एटीएस नांदेड द्वारा जांच जारी रखना वैध था।