Prayagraj: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि संविधान प्रत्येक बालिग नागरिक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने व पसंद की शादी करने की आजादी देता है। इस पर कोई वैज्ञानिक रोक नहीं है। संविधान सबको सम्मान से जीने का भी अधिकार देता है।
सम्मान के लिए लोग घर छोड़ देते हैं, धर्म बदल लेते हैं। धर्म के ठेकेदारों को अपने में सुधार लाना चाहिए, क्योंकि बहुल नागरिकों के धर्म बदलने से देश कमजोर होता है। विघटनकारी शक्तियों को इसका लाभ मिलता है।
अदालत ने कहा कि इतिहास गवाह है कि हम बंटे, देश पर आक्रमण हुआ और हम गुलाम हुए। सुप्रीम कोर्ट ने भी धर्म को जीवन शैली माना है और कहा है कि आस्था व विश्वास को बांधा नहीं जा सकता। इसमें कट्टरता, भय लालच का कोई स्थान नहीं है।
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अदालत ने कहा कि शादी एक पवित्र संस्कार है। शादी के लिए धर्म बदलना शून्य व स्वीकार्य नहीं हो सकता। कोर्ट ने इच्छा के विरुद्ध झूठ बोल कर धर्मांतरण करा निकाह करने वाले जावेद उर्फ जाविद अंसारी को जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया है।
पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया है कि सादे व उर्दू में लिखे कागज पर दस्तखत कराते गए। पहले से शादीशुदा था, झूठ बोला और धर्म बदलवाया। बयान के समय भी वह डरी सहमी दिखी। कोर्ट ने अपहरण, षड्यंत्र व धर्मांतरण कानून के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी है।
यह आदेश जस्टिस शेखर कुमार यादव ने दिया है। याची का कहना था कि दोनों बालिग है। अपनी मर्जी से धर्म बदलकर शादी की है। धर्मांतरण कानून लागू होने से पहले ही धर्म बदल लिया गया था। पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि वह 17 नवंबर 20 शाम पांच बजे जलेसर बाजार गई थी।
कुछ लोगों ने जबरन गाड़ी में डाल लिया। दूसरे दिन जब कुछ होश आया तो वकीलों की भीड़ में कड़कड़डूमा कोर्ट में पाया। वहीं कागजों पर दस्तखत लिए गए। 18 नवंबर को धर्मांतरण कराया गया। फिर कई जगहों पर ले गए। 28 नवंबर को निकाह कराया गया। मौका मिलने पर पुलिस को बुलाया। 22 दिसंबर को पीड़िता को पुलिस ने बरामद किया।