झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने दहेज उत्पीड़न से संबंधित एक मामले में सुनवाई करते हुए आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग पर टिप्पणी की है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि ससुराल वालों से नाराज महिलाएं कानून के इस प्रविधान का ढाल की बजाय एक हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं।
आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दहेज प्रताड़ना या क्रूरता करने पर पीड़ित महिला अपने पति या ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराने का प्रावधान किया गया है। यह एक गैर जमानती अपराध है, जिसमें तीन साल की सजा मिल सकती है।
अदालत ने कहा कि महिलाएं परिवारवालों से मामूली विवाद पर आवेश में आकर ऐसे मामले दाखिल कर रही हैं। सुनवाई के बाद अदालत ने महिला की ओर से ननद और उसके पति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और अदालत के संज्ञान को निरस्त करने का निर्देश दिया।
ननद और उसके पति पर 498-ए का केस
धनबाद की रहनेवाली एक महिला ने अपने ससुराल वालों के साथ ननद और उसके पति के खिलाफ प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इस पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया था। इसके खिलाफ राकेश राजपूत और उनकी पत्नी रीना राजपूत ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
प्राथियों ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप सही नहीं हैं, क्योंकि कथित घटना के दिन वे ट्रेन से सफर कर रहे थे। उनकी ओर से इस तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि घरेलू हिंसा में दूर के रिश्तेदारों को आरोपित नहीं बनाया जा सकता है।
इस पर अदालत ने कहा कि पति द्वारा क्रूरता को दंडित करने के उद्देश्य से आइपीसी की धारा में 498-ए को शामिल किया गया था। हाल के दिनों वैवाहिक विवादों में बढोतरी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि कई मामलों में धारा 498-ए का दुरुपयोग किया जा रहा है।
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