रांची। सेंट जेवियर स्कूल, हजारीबाग के खिलाफ कतिपय सात नाबालिग छात्रों ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में छात्रों को विद्यालय से हटाए जाने अथवा अगले कक्षा में प्रोन्नित नहीं दिए जाने का मामला कोर्ट के समक्ष उठाया गया है। याचिका में सभी छात्र कक्षा दो से कक्षा सात में उक्त विद्यालय में पढ रहे थे। इनमें से कइयों ने वर्तमान कक्षा की वार्षिक परीक्षा भी पास की है। परंतु स्कूल प्रबंधन ने यह कहते हुए कि पूर्व के कक्षा में इनके विरुद्ध शिकायतें थी, इसी आधार पर उन्हें प्रोन्नित नहीं देने व उनके अभिभावकों को विद्यालय से छात्रों को हटा लेने का आदेश दिया गया है। इस आदेश से करीब सौ से ज्यादा बच्चे प्रभावित हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि आरटीई एक्ट तथा वर्तमान परिस्थिति (कोविड-19) से संबंधित आदेशों एवं निर्देशों के आलोक में न तो छात्रों को उनकी कक्षा में रोका जा सकता है और न ही उन्हें निष्कासित करने की कार्रवाई उचित है। अधिवक्ता अपराजिता का कहना है कि अनुसंधानों में तथा यूएनओ की एजेंसियों द्वारा किए गए रिसर्च में यह स्पष्ट है कि अबोध छात्रों को उनकी कक्षा में रोकना तथा विद्यालय से निष्कासित करने का कुप्रभाव उनके भविष्य पर पड़ता है। अवयस्क छात्र को संविधान की धारा 21ए में शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। इसलिए निजी विद्यालयों के विरुद्ध भी याचिका संपोषित है, क्योंकि ऐसे विद्यालय भी एक प्रकार से सार्वजनिक सेवा करते हैं।
छात्रों की ओर से दायर याचिका में छात्रों को अगली कक्षा में प्रोन्नति दिए जाने, विद्यलाय से निष्कासित नहीं करने एवं ऑनलाइन क्लास में शामिल करने का निर्देश विद्यालय प्रबंधन को देने की मांग की गई है। यह सर्व विदित है कि निजी विद्यलायों द्वारा नामांकन से लेकर प्रोन्नति इत्यादि के संबंध में कई बार अनुचित निर्णय लिया जाता है, जिससे आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है। ऐसे में उपरोक्त मामला बहुत ही महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अधिवक्ता का दावा है कि पूर्व में पारित अदालतों के आदेश के आधार पर यह मामला सबसे अलग होगा।
लेखिका झारखंड हाई कोर्ट की अधिवक्ता है।