Ranchi: Court News झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से मेयर के अधिकारों में कटौती के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब मांगा है। अदालत ने कहा कि अगली सुनवाई के दौरान इस मामले में बिना किसी वजह के सुनवाई स्थगित नहीं की जाएगी और न किसी को कोई समय मिलेगा। इसलिए राज्य सरकार सुनवाई से पहले जवाब दाखिल कर दे।
चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई 21 जनवरी को निर्धारित की है। इसको लेकर संजय कुमार की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। जिसमें महाधिवक्ता के मंतव्य पर मेयर और निकाय के अध्यक्षों के अधिकारों में कटौती कर दी गई है। याचिका में कहा गया है कि महाधिवक्ता ने म्यूनिसिपल एक्ट 2011 में निहित प्रविधानों की गलत व्याख्या की है और इसको आधार बनाकर सरकार ने सभी निगम और निकायों को कार्यवाही करने का निर्देश दिया है।
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सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता सह वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुमारी सुगंधा ने अदालत को बताया कि म्यूनिसिपल एक्ट 2011 में मेयर और पीठासीन पदाधिकारी को स्पष्ट अधिकार दिया गया है। नगर निगम या निकायों की कार्यवाही इनके ही आदेश या निर्देश पर की जाती है। लेकिन राज्य सरकार ने इस एक्ट की धारा 89 के प्रविधानों के अनुरूप नियमावली बनाने की बजाय महाधिवक्ता के मंतव्य को ही राज्य में लागू कर दिया है, जो गलत है।
महाधिवक्ता के मंतव्य को सरकार नियम समझ कर निगम या निकायों में इसके तहत ही कार्यवाही करने का निर्देश देना गैरकानूनी और हास्यास्पद है। अदालत महाधिवक्ता के मंतव्य के सही होने या गलत होने के विषय पर निर्णय नहीं देगी। निगम में मेयर के बिना सहमति के ही संविदा सहित अन्य अवैध कार्यवाही की जा रही है, जिससे वित्तीय अनियमितता हो रही है। अदालत को बताया गया कि एक्ट में स्पष्ट प्रविधानों के विपरीत महाधिवक्ता के मंतव्य को सरकार सीधे तौर पर मानकर काम कर रही है, जो कि गलत और गैरकानूनी है। इसके बाद अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है।