रांची। हाईकोर्ट ने हजारीबाग की नाबालिग को एसिड पिलाने के मामले में पुलिस की शिथिल जांच पर एक बार फिर कड़ी नाराजगी जताई है। जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि इस मामले का शपथ पत्र देखकर पता चल रहा है कि पुलिस आरोपी को बचाने के लिए वकील की भूमिका में नजर आ रही है। अदालत ने कहा कि पुलिस तब पीड़िता का बयान दर्ज कराती है, जब कोर्ट आदेश देता है, जबकि सबसे पहले उसका ही बयान दर्ज होना चाहिए। लेकिन पुलिस की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं हो रहा है।
अदालत ने कहा कि इस मामले में पुलिस पहले दिन से ही आरोपित को बचाने का प्रयास कर रही है और अब तक की गई सारी कार्यवाही से पता चल रहा है कि इस मामले को भी रफादफा करने की कोशिश हो रही है। अदालत ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा कि हजारीबाग कोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक आरोपित ने पहले अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी। लेकिन बाद में उसने उसे वापस ले लिया क्योंकि उसे पता था कि पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं करेगी। इसके बाद अदालत ने 19 अक्टूबर तक जांच रिपोर्ट की जानकारी देने का निर्देश दिया है।
सुनवाई के दौरान हजारीबाग के एसपी और जांच अधिकारी वीसी के जरिए कोर्ट में उपस्थित थे। दरअसल, दिसंबर 2019 में हजारीबाग की एक नाबालिग स्कूली छात्रा को कुछ लोगों ने एसिड पिला दिया था। छात्रा का पटना एम्स और रांची के रिम्स में इलाज चल रहा था। एसिड पिलाने के कारण वह दो माह तक कुछ बोल नहीं पा रही थी। अखबारों में खबर प्रकाशित होने के बाद अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने चीफ जस्टिस का पत्र लिखा था। इसके बाद चीफ जस्टिस ने इस पर संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया।
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