SC-ST case: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला- SC-ST कानून के तहत केस समझौते के आधार पर खत्म कर सकती हैं अदालतें
New Delhi: SC-ST case सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सजा के बाद अपील के दौरान हुए समझौते के आधार पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आपराधिक मामला खत्म कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 में प्राप्त शक्तियों और सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 में मिली शक्ति के तहत सजा के बाद अपील पर सुनवाई के दौरान पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर आपराधिक मुकदमा समाप्त कर सकते हैं।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में दोषी व्यक्ति का मामला समाप्त करते हुए उसे सजा देने का हाईकोर्ट और निचली अदालत का फैसला रद कर दिया। यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि तय कानून के मुताबिक एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त नहीं हो सकता।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मध्य प्रदेश के एक मामले में दोषी रामअवतार की याचिका स्वीकार करते हुए उक्त फैसला सुनाया। रामअवतार को निचली अदालत और हाई कोर्ट से एससी-एसटी एक्ट में दोषी ठहराते हुए छह महीने का कारावास और 1,000 रुपये जुर्माने की सजा हुई थी। उस पर शिकायतकर्ता को जाति सूचक शब्द कहकर अपमानित करने का आरोप था।
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रामअवतार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील के दौरान शिकायतकर्ता के साथ हुए समझौते को पेश कर कोर्ट से केस खत्म करने की अपील की गई थी। रामअवतार की वकील आभा शर्मा का कहना था कि यह वास्तव में दो पड़ोसियों के बीच बाउंड्री वाल को लेकर हुए दीवानी विवाद का मामला है जिसे बाद में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज करा दिया गया। हालांकि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से समझौते के आधार पर मामला बंद करने और आरोपित को राहत देने की दलील का जोरदार विरोध किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने रामअवतार के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का आपराधिक मामला समाप्त करते हुए कहा कि उच्च अदालतों के पास अपील के दौरान पूर्ण न्याय करने की बहुत शक्तियां होती हैं। कोई भी सजा अंतिम नहीं मानी जा सकती जब तक कि दोषी को उसके खिलाफ कानूनी राहत पाने का अधिकार हो। कोर्ट ने कहा कि यह कानून एससी-एसटी वर्ग को उच्च जाति द्वारा अपमान और अत्याचार से बचाने के लिए है।
कोर्ट को ऐसा करते वक्त एससी-एसटी वर्ग के लोगों के संरक्षण और उनके पुनर्वास के कानून के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। लेकिन अगर कोर्ट को लगे कि एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमा दीवानी या प्राइवेट प्रकृति का है या फिर अपराध पीड़ित की जाति के आधार पर नहीं किया गया है अथवा मुकदमा जारी रहना कानूनी प्रक्रिया का दुरपयोग होगा तो कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए समझौते के आधार आपराधिक मामला निरस्त कर सकता है।