झारखंड हाई कोर्ट जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने एक फैसले में कहा है कि बर्खास्त कर्मचारी को सभी प्रकार के लाभ पाने का अधिकार है। कर्मचारी की बर्खास्तगी आदेश कोर्ट के रद कर दोबारा नियुक्त करने के आदेश पर यह लागू होगा, भले ही कोर्ट ने बर्खास्तगी अवधि के दौरान का वेतन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ देने का निर्देश नहीं दिया है।
अदालत ने कहा कि काम नहीं करने की अवधि के दौरान नो वर्क नो पे का सिद्धांत लागू होता है, लेकिन जब बर्खास्तगी को अवैध घोषित कर दिया जाए, कर्मचारी की सेवा को निरंतर मानते हुए उस अवधि के वेतन और उसकी सेवानिवृत्ति लाभ में बर्खास्तगी अवधि के लाभ की कटौती नहीं की जा सकती। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को प्रार्थी की बर्खास्तगी अवधि 23 जुलाई 1992 से 30 नवंबर 2009 की अवधि का सभी बकाया और सेवानिवृत्ति लाभ छह सप्ताह में भुगतान करने का निर्देश देते हुए याचिका निष्पादित कर दी।
इस संबंध में उमेश कुमार सिंह ने याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि प्रार्थी की नियुक्ति शिक्षा विभाग में लिपिक के पद पर धनबाद में वर्ष 1989 में हुई थी। अचानक 23 जुलाई 1992 को उसकी सेवा यह कहते हुए बर्खास्त कर दी गयी कि प्रार्थी की नियुक्ति जिला शिक्षा अधिकारी से अनुमोदित नहीं है। इसके खिलाफ प्रार्थी ने एकलपीठ में याचिका दायर की। एकलपीठ ने प्रार्थी के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया और सेवा जारी रखने का निर्देश दिया।
इसके खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील की। खंडपीठ ने भी एकलपीठ के आदेश को सही बताया। इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और सुप्रीम कोर्ट ने भी खंडपीठ के आदेश को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद प्रार्थी की सेवा स्वीकृत पद पर बहाल की गयी, लेकिन बर्खास्तगी अवधि का वेतन नहीं दिया गया। बकाया वेतन के लिए प्रार्थी ने विभाग के पास आवेदन दिया, लेकिन विभाग ने कहा कि इस अवधि में उन्होंने काम नहीं किया है, इस कारण वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिल सकतीं। इसके खिलाफ प्रार्थी ने पुन: हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि प्रार्थी की नियुक्ति दूसरे स्वीकृत पद पर हुई है इस कारण वह अपनी सेवा नियमित रहने का दावा नहीं कर सकता। प्रार्थी ने 23 जुलाई 1992 से 30 नवंबर 2009 तक काम ही नहीं किया है, इसलिए उसे कोई मौद्रिक लाख नहीं मिल सकता। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में इस अवधि का वेतन भुगतान करने का निर्देश नहीं दिया है।
सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि प्रार्थी का बर्खास्तगी आदेश के अवैध घोषित कर दिया गया है। इस कारण उसकी नियुक्ति बरकरार रही है। इस कारण बर्खास्तगी अवधि के दौरान काम नहीं करने के आधार पर उसे आर्थिक लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। वह इसका हकदार है। इसलिए सरकार उक्त अवधि का बकाया का भुगतान छह सप्ताह में करे और सेवानिवृत्ति लाभ के भुगतान में भी इसे शामिल करना होगा।