सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा अवमानना के मामले में स्थगन आदेश पारित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना किए जाने को चिंताजनक बताया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ की गई टिप्पणी न सिर्फ अनुचित, निंदनीय और अवांछित थी बल्कि इससे पूरी न्यायपालिका बदनाम हुई है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने जज द्वारा की गई टिप्पणियों को अदालत की कार्यवाही से निकाल दिया है। पीठ ने कहा कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राजवीर सहरावत की टिप्पणी गंभीर चिंता का विषय है। हम इससे पूरी तरह से दुखी हैं। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय सहित कोई भी न्यायालय ‘सर्वोच्च’ नहीं है, बल्कि संविधान ‘सर्वोच्च’ है। हम सभी संविधान से अधीन हैं। हमारा काम संविधान की व्याख्या करना है।
पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष मामले की कार्यवाही के दौरान जस्टिस सहरावत की टिप्पणियां पूरी तरह से अनावश्यक थीं। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत और ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे।
प्रत्येक न्यायाधीश न्यायिक कार्यप्रणाली पर न्यायिक प्रणाली की पदानुक्रमिक प्रकृति द्वारा प्रस्तावित अनुशासन से बंधा हुआ है। न्यायिक अनुशासन का उद्देश्य सभी संस्थानों की गरिमा को बनाए रखना है। चाहे वह जिला न्यायालय हों, हाईकोर्ट हों या सुप्रीम कोर्ट। – डीवाई चंद्रचूड़, मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट
आदेश से पक्षकार असंतुष्ट हो सकते हैं, जज नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी आदेश से मामले से जुड़े पक्षकार असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन न्यायाधीश किसी हाईकोर्ट के आदेश से कभी असंतुष्ट नहीं हो सकते। हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा की गई इस तरह की टिप्पणियां पूरे न्यायिक तंत्र को बदनाम करती हैं और इससे न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट बल्कि उच्च न्यायालयों की गरिमा को भी प्रभावित करती हैं।
संयम बरतें जज
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि गत 17 जुलाई के आदेश का प्रतिकूल प्रभाव सुनवाई के दौरान एकल न्यायाधीश द्वारा की गई अनावश्यक टिप्पणियों के बारे में एक वीडियो के प्रसार से और बढ़ गया। न्यायालय की हर कार्यवाही की व्यापक रिपोर्टिंग होती है, खास तौर पर लाइव स्ट्रीमिंग के संदर्भ में। ऐसे में यह और भी जरूरी हो गया है कि न्यायाधीश कार्यवाही के दौरान टिप्पणियों में उचित संयम और जिम्मेदारी बरतें।
यह था मामला
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से 12 फरवरी, 2021 में जमीन से जुड़े एक मामले में शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मई में रोक लगा दी थी। इस पर गत 17 जुलाई को हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी।