New Delhi: Appointment of consumer courts सुप्रीम कोर्ट ने राज्य उपभोक्ता आयोगों और जिला उपभोक्ता फोरमों की रिक्तियां भरने में देरी पर फिर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, दुर्भाग्य की बात है कि न्यायपालिका को देखना पड़ रहा है कि लोग नियुक्त हैं या नहीं, यह बहुत सुखद स्थिति नहीं है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उसके आदेश के मुताबिक नियुक्ति प्रक्रिया जारी रहेगी और यह प्रक्रिया बांबे हाई कोर्ट के आदेश के चलते प्रभावित नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गत 11 अगस्त को सभी राज्यों और केंद्र सरकार को राज्य उपभोक्ता आयोगों और जिला उपभोक्ता फोरम के खाली पड़े पदों को आठ सप्ताह में भरने का आदेश दिया था।
अदालत ने कहा था कि अगर आदेश का पालन नहीं होगा तो संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को सुनवाई के दौरान मौजूद रहने का आदेश दिया जाएगा। इसके बाद अभी हाल में बांबे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने उपभोक्ता संरक्षण कानून के कुछ प्रविधानों को रद कर दिया।
इसकी जानकारी जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ को दी गई और चल रही नियुक्ति प्रक्रिया हाई कोर्ट के आदेश से बाधित होने की आशंका जताई गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति साफ करते हुए कहा कि चल रही प्रक्रिया जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट उपभोक्ता अदालतों में खाली पदों के मामलों में स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है। पिछली सुनवाई पर भी कोर्ट ने रिक्तियां भरने में सरकार के ढीले रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार न्यायाधिकरण (ट्रिब्युनल्स) नहीं चाहती तो उपभोक्ता संरक्षण कानून खत्म कर दे।
कोर्ट को अपने क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर यह देखना पड़ता है कि रिक्तियां भरी हैं या नहीं। सामान्य तौर पर कोर्ट को इसमें अपना वक्त नहीं लगाना चाहिए और रिक्तियां अपने आप भरनी चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि न्यायपालिका को देखना पड़ रहा है कि लोग नियुक्त हैं या नहीं, यह बहुत सुखद स्थिति नहीं है।
सरकार की ओर से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) अमन लेखी ने इसका खंडन किया और कहा कि कानून पारित करने में कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ है। पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कोर्ट कुछ कहता है और आप कुछ और करते हैं। इसमें नागरिक परेशान होते हैं।
उपभोक्ता फोरम छोटी-छोटी शिकायतों के निवारण के लिए हैं। यहां छोटे मुद्दे आते हैं, कोई बड़े मामले नहीं आते। इन्हें स्थापित करने का उद्देश्य उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करना है। एएसजी ने कहा कि सरकार को इसे लेकर कोई ईगो नहीं है और न ही सरकार नियुक्तियों में जानबूझकर धीमी रफ्तार अख्तियार किए है।
पीठ ने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन यह अच्छी तस्वीर नहीं पेश करती। पीठ के दूसरे न्यायाधीश एमएम सुंद्रेश ने कहा कि उपभोक्ताओं के लिए स्थायी अदालत पर भी विचार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को अपने क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर यह देखना पड़ता है कि रिक्तियां भरी हैं या नहीं।