Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले में राज्य सरकार को जल्द से जल्द पेंशन देने का आदेश दिया है, जिसमें 32 साल की नौकरी करने के बाद विभाग उन्हें संविदा कर्मी बताते हुए सेवानिवृत्ति लाभ देने से मना कर दिया। अदालत ने छह सप्ताह में सरकार को नियमित करने और उसके तीन सप्ताह बाद महालेखाकार के यहां पेंशन के दस्तावेज भेजने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत में इस मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने अदालत को बताया कि प्रार्थी उद्योग विभाग में लिपिक के पद पर वर्ष 1986 में नियुक्ति हुआ था। इस दौरान उन्होंने सारे नियमों का पालन करते हुए स्थायी रूप में लिपिक पद पर ज्वाइनिंग की थी। सेवा पूरी करने के बाद वर्ष 2018 में सेवानिवृत्त हो गए।
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पेंशन सहित अन्य लाभ के लिए उनकी ओर से विभाग में आवेदन दिया, तो विभाग ने कहा कि उन्हें संविदाकर्मी के तौर पर रखा गया था। इसलिए उन्हें पेंशन का लाभ नहीं दिया जा सकता है। इसके बाद प्रार्थी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।
अदालत को यह भी बताया गया कि इस मामले में विभागीय मंत्री और सचिव ने प्रार्थी को स्थायी कर्मचारी मानते हुए सभी तरह का लाभ देने का आदेश दिया था, लेकिन विभाग की ओर से ऐसा नहीं किया गया। इस पर अदालत ने कहा कि उमा देवी मामले में पारित आदेश के तहत इन्हें नियमित करना चाहिए।
उमा देवी आदेश के बाद राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2015 में बनाई गई नियमावली के तहत इन्हें नियमित किया जा सकता था। अदालत ने कहा कि प्रार्थी को वर्ष 2018 से अब तक के बकाया पर पांच प्रतिशत ब्याज की राशि देने का निर्देश दिया। इसके बाद अदालत ने याचिका को निष्पादित कर दिया।