सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम एक नए प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इस प्रस्ताव के तहत मौजूदा या पूर्व संवैधानिक न्यायालय के जजों के परिवार के सदस्यों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश फिलहाल रोकी जा सकती है।
सूत्रों की माने तो ऐसा इसलिए किया जा रहा क्योंकि एक आम धारणा है कि इन वकीलों को पहली पीढ़ी के वकीलों की तुलना में जज बनने की प्रक्रिया में प्राथमिकता मिलती है। दिसंबर 2022 में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट न्यायाधीशों के लिए सिफारिश किए गए वकीलों के साथ बातचीत भी शुरू की है। यह उनकी उपयुक्तता और क्षमता का आकलन करने के लिए किया जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदारों की नियुक्ति के खिलाफ विचार कर सकता है। कॉलेजियम हाईकोर्ट के कॉलेजियम को ऐसे उम्मीदवारों की सिफारिश न करने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है, जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश रहे हों।
कॉलेजियम के एक जज ने रखा है विचार
इस धारणा को मिटाने के लिए कि योग्यता से ज्यादा वंश को महत्व दिया जाता है या न्यायिक अधिकारी को हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश में पहली पीढ़ी के वकीलों पर प्राथमिकता दी जाती है, कॉलेजियम के एक जज ने हाल ही में एक विचार रखा। उन्होंने हाईकोर्ट के कॉलेजियम को निर्देश देने का सुझाव दिया कि वे ऐसे वकीलों या न्यायिक अधिकारियों की सिफारिश न करें जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालयों के जज थे हैं।
यह प्रस्ताव कुछ अन्य लोगों को भी पसंद आया और तब से कॉलेजियम के अन्य सदस्यों के बीच एक खुली बहस का विषय बन गया है। हालांकि, न्यायाधीश ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि इससे योग्य लोगों को न्यायाधीश बनने से सिर्फ इसलिए वंचित किया जा सकता है क्योंकि वे उच्च न्यायपालिका के मौजूदा या पूर्व न्यायाधीशों के रिश्तेदार हैं।
यह लोग हैं हिस्सा
कॉलेजियम में सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई, सूर्यकांत, हृषिकेश रॉय और ए एस ओका शामिल हैं। वे जानते हैं कि कुछ योग्य उम्मीदवार, जो वर्तमान या पूर्व सुप्रीम कोर्ट या हाकोर्ट जजों के करीबी रिश्तेदार हैं, इस प्रस्ताव से वंचित हो सकते हैं।इसके अलावा, जस्टिस हृषिकेश रॉय और अभय एस. ओका भी हाईकोर्ट में जजों की सिफारिश करने वाली पांच सदस्यीय कॉलेजियम का हिस्सा हैं।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में उच्च न्यायालयों में सिफारिश की गई जजों के लिए व्यक्तिगत मुलाकातें शुरू की हैं, जो पारंपरिक बायोडाटा, लिखित मूल्यांकन और खुफिया रिपोर्ट्स से एक महत्वपूर्ण बदलाव है। 22 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक में राजस्थान, उत्तराखंड, मुंबई और इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए करीब छह नाम केंद्र को भेजे गए थे।
यह बदलाव हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादास्पद बयान के बाद आया है। दिसंबर में एक वीएचपी इवेंट में जस्टिस यादव ने बहुसंख्यक समुदाय की इच्छाओं के अनुसार भारत के काम करने की बात कही थी, जिससे विवाद खड़ा हो गया था। 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया था और इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस पर रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद, जस्टिस यादव ने 17 दिसंबर को कॉलेजियम के समक्ष अपना पक्ष रखा।
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया एनजेएसी
बता दें, अक्तूबर 2015 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की संवैधानिक पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को रद्द कर दिया था। एनजेएसी को संसद द्वारा सर्वसम्मति से कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के लिए लाया गया था। कॉलेजियम प्रणाली, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के चयन को नियंत्रित करती है।एनजेएसी को रद्द करने के बाद से सुप्रीम कोर्ट ने जजों के चयन की अपारदर्शी प्रक्रिया में कुछ पारदर्शिता लाने की कोशिश की है।
जजों की चयन प्रक्रिया पर उठते रहे हैं सवाल
हालांकि, यह उन चिंताओं को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं रहा है जो एनजेएसी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सामने आई थीं। कई लोगों का मानना था कि जजों द्वारा जजों का चयन करने की प्रणाली ‘आप मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी खुजाऊंगा’ जैसी प्रथा को बढ़ावा देती है।
इससे चयन प्रक्रिया पर दाग लगा है क्योंकि मौजूदा या पूर्व संवैधानिक न्यायालय के जजों के कई बच्चों को हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। एनजेएसी की सुनवाई के दौरान एक वकील ने दावा किया था कि 50% हाईकोर्ट के जजों के करीबी रिश्तेदार पूर्व या वर्तमान संवैधानिक न्यायालय के जज थे।