Ranchi: झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्त सहित राज्य के 12 संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद रिक्त रहने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आनलाइन पक्ष रखते हुए कहा कि विधानसभा के मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति इसलिए नहीं हो पाई है कि बाबूलाल मरांडी जेवीएम के टिकट पर जीते हैं। फिलहाल पार्टी के विलय का मामला स्पीकर कोर्ट के यहां लंबित है।
भाजपा दे नेता प्रतिपक्ष के लिए दूसरा नाम
ऐसे में भाजपा को दूसरा नाम प्रस्तावित करना चाहिए। अदातल ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति की वजह से लोकायुक्त सहित 12 अन्य संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में टालमटोल नहीं होना चाहिए।
इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। मामले में अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी।
सुनवाई के दौरान विधानसभा सचिव की ओर से जवाब दाखिल किया गया। इसमें कहा गया है कि दल-बदल का मामला अभी स्पीकर के यहां लंबित है। ऐसे में कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने विधानसभा सचिव से दो बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। अदालत ने पूछा था कि यदि कोई राजनीतिक दल अगर विपक्ष के नेता के लिए किसी का नाम देता है तो विधानसभा स्पीकर क्या सिर्फ इस आधार पर इस मामले को लंबित रख सकते हैं कि उनके खिलाफ दल बदल का मामला चल रहा है।
दूसरे बिंदु में कोर्ट ने पूछा है कि क्या हाई कोर्ट को यह अधिकार है कि वह विधानसभा अध्यक्ष को विपक्ष के नेता बनाने के लिए निर्देश दे सकता है।
इस संबंध में प्रार्थी राजकुमार की ओर से अवमानना याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने 2020 में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कर लेने का अंडरटेकिंग दिया था, लेकिन अब तक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है।