Ranchi: 6th JPSC Exam छठी जेपीएससी की मेरिट लिस्ट रद करने के खिलाफ दाखिल कई अपील याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में बहस पूरी कर ली गई है। सभी पक्षों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
इसको लेकर शिशिर तिग्गा सहित करीब दो सौ नौकरी पाने वाले अभ्यर्थियों ने एकलपीठ के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की है। एकल पीठ ने छठी जेपीएससी की मेरिट लिस्ट को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) के अंक को कुल प्राप्तांक में नहीं जोड़ा जा सकता है।
इसके अलावा सभी अभ्यर्थियों को प्रत्येक पेपर में निर्धारित न्यूनतम अंक लाना अनिवार्य है। अदालत ने जेपीएससी के संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया था। हालांकि इस मामले में पूर्व में अदालत ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।
सुनवाई के दौरान अपीलकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि जेपीएससी द्वारा पेपर वन के अंक को कुल प्राप्तांक में जोड़ा जाना सही है। इसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। छठी जेपीएससी में कुल छह पेपर होने थे जिसके लिए कुल प्राप्तांक 1050 निर्धारित था।
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ऐसे में अगर पेपर वन के अंक को हटा दिया जाए तो कुल प्राप्तांक 950 होता है। इसलिए जेपीएससी ने विज्ञापन की शर्तों के अनुरूप ही पेपर वन के अंक को कुल प्राप्तांक में जोड़ा है। इस दौरान उनकी ओर से बीएस दूबे कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र किया गया जिसमें क्वालिफाइंग पेपर के अंक को जोड़े जाने की बात कही गई है।
इसके बाद प्रतिवादियों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुमारी सुगंधा ने अदालत को बताया कि विज्ञापन में पेपर वन में सिर्फ क्वालिफाइंग अंक लाने की शर्त लगाई गई है। इसमें सभी अभ्यर्थियों को मात्र तीस अंक लाने की बात कही है।
इसका उद्देश्य परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों के हिंदी और अंग्रेजी विषय की जानकारी की परीक्षा लेना है। पेपर वन क्वालिफाइंग पेपर होने की वजह से इनका अंक नहीं जोड़ा जाना था। लेकिन जेपीएससी ने पेपर वन के अंक को भी जोड़ दिया और कुल प्राप्तांक के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार की गई है।
जबकि सभी को प्रत्येक पेपर में न्यूनतम अंक लाना था और उसके आधार पर ही मेरिट लिस्ट जारी करनी थी। एकल पीठ ने इसी आधार पर मेरिट लिस्ट को निरस्त करते हुए संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया है, जो कि बिल्कुल सही है। इस मामले में वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा, विज्ञान साह, सुमीत गाड़ोदिया, अमृतांश वत्स और शुभाशीष सोरेन ने पक्ष रखा।
बता दें कि इस मामले में राज्य सरकार ने अपील दाखिल नहीं की है, बल्कि 326 चयनित अभ्यर्थियों की ओर से एकल पीठ के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की गई है। हालांकि पूर्व में खंडपीठ ने इस मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है।