Ranchi: 7th JPSC Exam News झारखंड हाईकोर्ट से सातवीं जेपीएससी के शामिल होने वाले उन अभ्यर्थियों को बड़ा झटका लगा है, जिन्होंने हाईकोर्ट से उम्र की सीमा वर्ष 2016 की बजाय 2011 करने की मांग की थी। इस मामले में चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने सरकार द्वारा उम्र की सीमा के निर्धारण सही मानते हुए कहा कि एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। इसलिए अपील खारिज की जाती है।
चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन ने कहा कि उन्हें इस परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों के साथ सहानुभूति है। लेकिन कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बंधी है, इसलिए उन्हें कोई अंतरिम राहत नहीं प्रदान की जा सकती है। अदालत ने कहा कि इस मामले में कोर्ट डिटेल आदेश बाद में पारित करेगी। इस दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत से जल्द से जल्द आदेश की प्रति उपलब्ध कराने का आग्रह किया, ताकि सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की जा सके।
इस मामले में रीना कुमारी सहित चार अन्य अभ्यर्थियों की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज, कुमारी सुगंधा और कुशल कुमार ने अदालत को बताया कि जेपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा के लिए वर्ष 2020 में विज्ञापन जारी किया था। इसमें उम्र की सीमा एक अगस्त 2011 रखी गई थी। लेकिन बाद में सरकार ने नियुक्ति के विज्ञापन को रद कर दिया।
सरकार ने परीक्षा नियमावली बनाने के बाद दोबारा विज्ञापन जारी किया है। इसमें उम्र सीमा एक अगस्त 2016 रखा है। जबकि यह परीक्षा वर्ष 2017 से 2020 के रिक्त पदों की है। नियमानुसार प्रत्येक साल सिविल सेवा की परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। लेकिन जेपीएससी ने चार साल के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए एक साथ ही विज्ञापन जारी किया है। ऐसा करने से कई वैसे अभ्यर्थी वंचित हो गए, जिन्हें पहले विज्ञापन से आवेदन करने की उम्मीद थी।
इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि अब तक जेपीएससी की ओर से ली जाने वाली परीक्षा के लिए कोई नियमावली नहीं थी। अब सरकार ने नियमावली बना दी है। उसके बाद विज्ञापन जारी किया है। इसमें राज्य सरकार ने वर्ष 2017 से 2020 की नियुक्ति को एक साथ क्लब कर दिया है और वर्ष 2021 में विज्ञापन जारी किया है। इसमें उम्र की सीमा को कम करते हुए इसका निर्धारण एक अगस्त 2016 रखा गया है।
पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियमानुसार हर साल के रिक्त पदों पर नियुक्ति होनी चाहिए थी, लेकिन राज्य सरकार ऐसा करने में विफल रही। ऐसे में क्या राज्य सरकार की गलती का खामियाजा अभ्यर्थियों को भुगतना पड़ेगा। अदालत ने कहा कि सिविल सेवा परीक्षा के लिए लोग कई सालों से तैयारी करते हैं। जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवार व प्रिंस कुमार सिंह ने पक्ष रखा।