New Delhi: Reservation in promotion सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC-ST) को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण (reservation in promotion) प्रदान करने को लेकर दायर याचिकाओं पर बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी संबद्ध पक्षों की दलीलें सुनीं।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल बलबीर सिंह व अन्य वरिष्ठ वकीलों ने विभिन्न राज्यों की ओर से पक्ष रखा। केंद्र सरकार ने पीठ के समक्ष पहले ही कह दिया था कि यह सच है कि आजादी के करीब 75 वर्ष बाद भी अजा-जजा के लोगों को उस स्तर पर नहीं लाया जा सका है, जहां अगड़ी जातियों के लोग हैं। मामले की सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना व जस्टिस बीआर गवई भी शामिल हैं।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि अजा व जजा वर्ग के लोगों को ग्रुप ए श्रेणी के उच्च पद प्राप्त करना और मुश्किल। अब समय आ गया है जब शीर्ष कोर्ट को अजा, जजा व अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) के रिक्त पदों केा भरने के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
पिछली सुनवाई में पीठ ने कहा था कि वह अजा-जजा को प्रमोशन में आरक्षण को लेकर दिए गए अपने पूर्व के फैसले को फिर से नहीं खोलेगी। यह राज्यों पर निर्भर करता है कि वे उस फैसले का किस तरह से पालन करते हैं।
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पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उन कदमों की जानकारी मांगी थी, जो केंद्रीय नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का आकलन करने के लिए उठाए गए। पीठ ने सरकार से कहा कि एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए साल 2006 के नागराज मामले में संविधान पीठ के फैसले का पालन करने के लिए की गई कवायद की जानकारी उपलब्ध कराए।
जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी समुदाय के लिए पदोन्नति में आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। पीठ ने कहा कि वह एक इस विवादास्पद मुद्दे पर फैसला करेगी कि आरक्षण नागराज मामले में दिए फैसले के अनुसार, एक समुचित अनुपात या प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के आधार पर होना चाहिए।
पीठ ने कहा था कि हम यह जानना चाह रहे हैं कि नागराज मामले में फैसले के बाद प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का पता लगाने के लिए क्या किया गया है? अगर हम आरक्षण की पर्याप्तता का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर करते हैं तो इसमें बड़ी खामियां हो सकती हैं। केंद्र को पर्याप्तता का अर्थ समझने के लिए दिमागी कसरत करनी चाहिए थी। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने कहा कि इसी कारण आनुपातिक परीक्षण लागू नहीं किया गया था।