New Delhi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने एक उदाहरण देते हुए सवाल किया कि अगर एक विधायक विधानसभा में रिवाल्वर निकाल ले और उसे खाली कर दे तो क्या उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं होगा। क्या कोई कह सकता है कि सदन के भीतर का कृत्य होने के कारण उनके खिलाफ केस दर्ज नहीं किया जा सकता और क्या कोई सदन की सर्वोच्चता का दावा करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रश्न केरल सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान किया जिसमें सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार के शिक्षा मंत्री वी. शिवकुट्टी समेत छह सदस्यों के खिलाफ अभियोजन रद करने की मांग की गई है। 2015 में विपक्ष में रहते हुए इन सदस्यों ने विधानसभा में तोड़फोड़ की थी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए केरल सरकार से पूछा कि क्या सदन के ऐसे सदस्यों के खिलाफ मामलों को वापस लेने की मांग करना न्यायोचित होगा जिन्होंने लोकतंत्र के गर्भगृह में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।
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दरअसल, 13 मार्च, 2015 को तत्कालीन विपक्ष के एलडीएफ सदस्यों ने भ्रष्टाचार के आरोप का सामना कर रहे तत्कालीन वित्त मंत्री केएम मणि को बजट पेश करने से रोकने के लिए सदन में तोड़फोड़ की थी। उन्होंने स्पीकर की कुर्सी को पोडियम से उठाकर फेंक दिया था और पीठासीन अधिकारी की डेस्क पर लगे कंप्यूटर, की-बोर्ड और माइक जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरणों को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
- सदन के भीतर बोलने की आजादी है, इसमें कोई संदेह नहीं। सुप्रीम कोर्ट में भी अक्सर वकीलों में गर्मागर्म बहस होती है, लेकिन क्या इससे अदालत की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना जायज हो जाएगा?
- विधानसभा में हो या सुप्रीम कोर्ट में, सभी संपत्तियां सरकार की हैं और सरकार ही सभी सार्वजनिक संपत्तियों की संरक्षक है। बचाव में दलीलें देकर सरकार केस क्यों वापस लेना चाहती है, यह तो आरोपितों को करना चाहिए?
- पांच जुलाई को भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसे संसद और विधानसभाओं में सदस्यों के उपद्रवी व्यवहार पर कड़ा रुख अपनाना होगा क्योंकि ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं और इस तरह के आचरण को माफ नहीं किया जा सकता।
केरल सरकार की दलील
- यह राजनीति अभिव्यक्ति का मामला। यह विरोध था और बोलने की तरह विरोध के अधिकार को भी सदन में मान्यता प्राप्त है। विशेषाधिकार और छूट हासिल होने का दिया हवाला।
- विधानसभा सचिव की ओर से दर्ज कराई गई एफआइआर की कोई संवैधानिक वैधता नहीं क्योंकि स्पीकर ने इसकी मंजूरी नहीं दी।
हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
केरल हाई कोर्ट ने 12 मार्च को जारी अपने आदेश में राज्य सरकार की याचिका को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों से सदन की प्रतिष्ठा बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।