New Delhi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने 21 साल साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के एक जोड़े को मिला दिया, जब पत्नी दहेज उत्पीड़न के मामले में पति को सुनाई गई जेल की सजा की अवधि बढ़ाने की अर्जी को वापस लेने पर सहमत हुई। इससे पहले दोनों के बीच मध्यस्थता की तमाम कोशिशें असफल हो गई थीं।
चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पति और पत्नी का वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अपने सामने संवाद कराने का विशेष प्रयास किया। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे। महिला सुप्रीम कोर्ट के कामकाज की भाषा अंग्रेजी में असहज थी। ऐसे में चीफ जस्टिस ने स्वयं तेलुगु भाषा में बातचीत की और साथी जस्टिस को भी उसके बयान के बारे में बताया।
पति की सजा बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला से चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर आपका पति जेल चला जाएगा, तो आपको मासिक भत्ता भी नहीं मिल पाएगा क्योंकि उसकी नौकरी छूट जाएगी।
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आंध्र प्रदेश सरकार के कर्मचारी और गुंटुर में तैनात पति की ओर से पेश एडवोकेट डी. रामकृष्णा ने कहा कि चीफ जस्टिस ने महिला को तेलुगु में कानूनी स्थिति बताई और स्पष्ट किया कि कैद की अवधि बढ़ने से पति-पत्नी दोनों को लाभ नहीं होगा।
रेड्डी ने चीफ जस्टिस को हवाला देते हुए कहा कि अगर जेल की अवधि बढ़ाई गई तो आपको क्या मिलेगा…आपका मासिक गुजारा भत्ता भी रुक सकता है। महिला ने चीफ जस्टिस की सलाह शांति से सुनी और इसके बाद पति के साथ रहने को सहमत हो गई, बशर्ते उसका और उसके इकलौते बेटे की ठीक से देखभाल पति करे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी से दो हफ्ते में अलग-अलग हलफनामा दाखिल करने को कहा है, जिसमें जिक्र हो कि वे साथ रहना चाहते हैं। इसके अलावा पत्नी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील वापस लेने और पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा खत्म करने की अर्जी देने पर भी सहमत हुई।
इसके साथ ही पति ने तलाक की अर्जी भी वापस लेने पर सहमति जताई। गौरतलब है कि दपंति की शादी वर्ष 1998 में हुई थी। लेकिन दोनों के रिश्तों में जल्द खटास आ गई, जिसकी वजह से महिला ने वर्ष 2001 में पति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया। दोनों के बीच मध्यस्थता की कई कोशिश की गई लेकिन असफल रही।