यूपी के महाराजगंज में सड़क के चौड़ीकरण के लिए घरों को बुलडोजर से गिराने की कार्रवाई अब अफसरों पर उल्टी पड़ने लगी है। अब तत्कालीन डीएम, तत्कालीन एडीएम, तत्कालीन एडिशनल एसपी, तत्कालीन कोतवाल सहित 27 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है। मामले में 26 नामजद आरोपी हैं।
केस याचिकाकर्ता मनोज टिबरेवाल की तहरीर के आधार पर महाराजगंज की कोतवाली में दर्ज हुआ है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपए अंतरिम मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था।
छह नवंबर 2024 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा था कि प्रक्रिया का पालन किए बगैर किसी के घरों में घुसना, तोड़ना अराजकता है। पीठ ने सड़कें चौड़ी करने एवं अतिक्रमण हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की थी।
पीठ ने यूपी सरकार को महराजगंज के हामिद नगर इलाके में 2019 में सड़क चौड़ी करने के लिए घरों को तोड़े जाने के मसले पर पीड़ित मनोज टिबरेवाल की ओर से भेजे पत्र पर 2020 में स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए मामले में यह आदेश दिया था।
कोर्ट ने सड़क चौड़ा करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर लोगों के घरों को तोड़े जाने पर यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। शीर्ष अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए महराजगंज में लोगों के घरों को तोड़ने के लिए अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई को अत्याचारी कृत्य और अवैध बताते हुए कहा था कि आप (राज्य सरकार) रातों-रात लोगों के घरों को बुलडोजर से नहीं गिरा सकते।
सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने यूपी सरकार से कहा था कि आप घर में रहने वाले लोगों को खाली करने का समय नहीं देते, घरेलू सामानों का क्या? किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए उचित प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि लोगों ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण किया था।
इस पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि आप कहते हैं कि वह 3.7 वर्गमीटर का अतिक्रमणकर्ता था, हम इसे सुन रहे हैं, लेकिन आप इस बारे में कोई प्रमाण नहीं दे रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि तथ्यों से साफ पता चलता है कि कार्रवाई करने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, आप केवल साइट पर गए थे और लोगों को सूचित किया था।
हम इस मामले में दंडात्मक मुआवजा देने के इच्छुक हो सकते हैं। क्या इससे न्याय का उद्देश्य पूरा होगा। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि कार्रवाई में 123 अवैध निर्माण थे।
इस पर जस्टिस पारदीवाला ने यूपी सरकार से कहा कि आप यह किस आधार पर कह रहे हैं कि लोगों का घर अवैध था? आपने 1960 से क्या किया है? पिछले 50 साल से आप क्या कर रहे थे? बहुत अहंकारी, राज्य सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशों का कुछ सम्मान करना होगा, आप चुपचाप बैठे हैं और एक अधिकारी के कार्यों की रक्षा कर रहे हैं।
केवल ढोल बजाकर घर खाली करने को नहीं कह सकते
जस्टिस पारदीवाला ने राज्य सरकार के वकील से कहा था कि आपके अधिकारी ने पिछली रात सड़क चौड़ीकरण के लिए पीले निशान वाली जगह को तोड़ दिया, अगले दिन सुबह आप बुलडोजर लेकर आ गए। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से मनमानापूर्ण कार्रवाई है, आप केवल मौके पर गए और लाउडस्पीकर के माध्यम से लोगों को सूचित किया।
आप केवल ढोल बजाकर लोगों को घर खाली करने और उन्हें ध्वस्त करने के लिए नहीं कह सकते। उचित सूचना होनी चाहिए। पीठ ने एनएचआरसी की जांच रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसमें खुलासा हुआ कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कथित अतिक्रमण से कहीं अधिक व्यापक थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव को दिया था कार्रवाई का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी के मुख्य सचिव को अवैध तरीके से लोगों के घरों को तोड़ने के पूरे मामले की जांच करने का आदेश दिया था। पीठ ने मुख्य सचिव को अधिकारियों और ठेकेदारों की भूमिका की जांच कर सभी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने न सिर्फ याचिकाकर्ता मनोज टिबरेवाल बल्कि अन्य लोगों के घर को तोड़े जाने की कार्रवाई की जांच करने और एक महीने में रिपोर्ट पेश करने को कहा था। पीठ ने यूपी सरकार को जांच के बाद कानून की प्रक्रिया के उल्लंघन में कार्यों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ आपराधिक प्रकृति की कार्रवाई सहित उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया था।