झारखंड हाईकोर्ट ने अतिक्रमण बताकर तोड़े गए मकान को फिर से बनाने और प्रार्थी को 5 लाख मुआवजा देने का निर्देश सरकार को दिया है। मंगलवार को एक याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह निर्देश दिया। इस संबंध में ओमप्रकाश ने याचिका दायर की है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में प्रार्थी ने निर्धारित समय में अपीलीय प्राधिकार के समक्ष अपील दाखिल कर दिया था और मकान नहीं तोड़ने का कोर्ट का आदेश सीओ के समक्ष लाया था, इसके बाद भी उनका मकान क्यों तोड़ा गया। मकान तोड़ने के पहले झारखंड पब्लिक लैंड एंक्रोचमेंट एक्ट के तहत कोई कार्यावाही भी नहीं चलाई गई, सिर्फ पत्राचार के आधार पर मकान तोड़ दिया गया, जो गलत है।
प्रार्थी ओमप्रकाश को दुमका सदर सीओ ने झारखंड लैंड एंक्रोचमेंट एक्ट के तहत उनके जमीन को अतिक्रमण बताते हुए दो सप्ताह में उसे हटाने का नोटिस 8 जून 2016 को दिया था। इसके बाद में सीओ ने एक और आदेश पारित किया जिसमें प्रार्थी की जमीन को पब्लिक लैंड बता कर अतिक्रमण एक सप्ताह में हटाने का आदेश दिया, ऐसा नहीं करने पर उसे तोड़ने का आदेश दिया गया था। इसके खिलाफ प्रार्थी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रार्थी ने कोर्ट को बताया कि उनकी जमीन जो किसी के द्वारा दान दी गयी है उसपर वह वर्ष 1949 से रह रहे हैं। उसे अतिक्रमण बताते हुए तोड़ने का आदेश सीओ ने दिया है।
पूर्व में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रार्थी को दो सप्ताह में सक्षम अथॉरिटी के पास अपील दाखिल करने और इस दौरान किसी तरह की कोई कार्रवाई सरकार की ओर से नहीं करने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के आलोक में प्रार्थी ने निर्धारित समय सीमा के दौरान एसडीओ दुमका के पास अपील दायर की। लेकिन एसडीओ ने दो सप्ताह की अवधि पूरा होने के बाद बुलडोजर से उनके मकान को तोड़ दिया ।जबकि इस संबंध में अपील लंबित थी। हालांकि मकान तोड़ने के पहले एसडीओ ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अपील एडिशनल कलेक्टर के पास दाखिल की जानी थी, इस पर प्रार्थी ने यह करते हुए दोबारा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की कि गलत जगह में अपील दाखिल करने के बावजूद भी उनकी अपील को एसडीओ खारिज नहीं की कर सकते, वह संबंधित अथॉरिटी के पास उनकी अपील वापस भेज सकते थे। राज्य सरकार का कहना था वर्ष 2009 में यह जमीन झारखंड सरकार को ट्रांसपोर्ट विभाग के लिए आवंटित की गई है। इससे पहले एकीकृत बिहार के समय यह जमीन बिहार राज्य ट्रांसपोर्ट के लिए वर्ष 1959 में अधिग्रहित की गई थी।