Ranchi: Court News झारखंड हाईकोर्ट ने पहाड़ों के अवैध खनन के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि झारखंड राज्य का गठन जंगल और पहाड़ों के संरक्षण के लिए किया गया था। लेकिन सरकार इनको बचाने को लेकर कोई खास प्रयास नहीं कर रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य की अस्मिता बचाने के लिए गंभीर नहीं है।
अदालत इसको लेकर गंभीर है और राज्य की अस्मिता बचाने के लिए अदालत प्रयास जरूर करेगी।झारखंड में जंगल और पहाड़ नहीं बचेगा तो और क्या रहेगा। इसी उद्देश्य से राज्य का गठन किया गया है। चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने कहा कि जब भी ऐसा मामला आता है, राज्य सरकार हमेशा बचाव करते हुए शपथ पत्र कर देती है कि कहीं पर भी अवैध खनन नहीं हो रहा है।
उन्हें लगता है कि कोर्ट को कुछ पता ही नहीं है, लेकिन अदालत सबकुछ समझती है। ऐसा करके सरकार किसको धोखा दे रही है, खुद को या फिर कोर्ट को। अदालत ने यहां तक कहा कि राज्य के किसी पदाधिकारी की हिम्मत नहीं होगी कि वह अवैध खनन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराए।
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यह गिव एंड टेक (लेनदेन) वाला मामला है। अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई। जवाब देने का निर्देश देते हुए 14 जनवरी को सुनवाई निर्धारित की है। पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने खनन को लेकर एक नीति बनाने को कहा था।
अदालत ने उन जिलों की सर्वे रिपोर्ट भी मांगी है, जहां पर खनिज है। सुनवाई के दौरान राज्य के कई जिलों में पहाड़ों के गायब होने का मुद्दा उठाया गया। लेकिन राज्य सरकार हर बार इससे इन्कार करते हुए स्टीरियो टाइप का जवाब कोर्ट में दाखिल कर देती है। अदालत इस मामले में बहुत गंभीर है और किसी भी हाल में अवैध खनन के चलते पर्यावरण को नुकसान नहीं होने देगी।
अदालत का कहा था कि राज्य में जंगल और पहाड़ों के गायब होने के कारण ही राज्य के वन्य जीवों का जीवन बर्बाद हो रहा है। इस दौरान सरकार की ओर से कहा गया था कि अवैध खनन रोकने के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए अब जीपीएस के जरिए नजर रखी जा रही है। इसपर अदालत ने सरकार को विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।