झारखंड में सरकारी नौकरी के लिए ली जाने वाली किसी परीक्षा में जाति प्रमाण पत्र (caste certificate) के निर्धारित प्रारूप और कट ऑफ डेट से पहले का होने की शर्त पर आरक्षण का लाभ (benefit of reservation) नहीं देने के मामले की सुनवाई अब झारखंड हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय वृहद पीठ करेगी।
हाई कोर्ट के जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने इसको लेकर डा. नूतन इंदवार सहित अन्य की ओर से दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आदेश दिया है। अदालत ने वृहद पीठ में सुनवाई के लिए तीन बिंदु भी निर्धारित किए हैं।
पहला बिंदुः अदालत ने कहा कि इस तरह के हर मामले में सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2016 में रामकुमार गिजरोइया के मामले में पारित आदेश लागू होगा या नहीं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जाति प्रमाण पत्र के निर्धारित प्रारूप और देरी के कारण किसी को आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है।
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दूसरा बिंदुः जेपीएससी और जेएसएससी की ओर से जाति प्रमाण पत्र को विज्ञापन में तय तिथि से पहले का जारी होने और एक प्रारूप में जमा करने की शर्त लगाया जाना। क्या समानता और आरक्षण के अधिकार का उल्लंघन करता है या नहीं।
तीसरा बिंदुः अदालत ने कहा है कि अभ्यर्थियों जब जाति प्रमाण पत्र को निर्धारित तिथि के बाद जारी किया जाता है, तो उनको आरक्षित श्रेणी से अनारक्षित श्रेणी में शामिल कर दिया जाता है। बाद में उनका कैडिडेचर भी रद कर दिया जाता है, क्या ऐसा करने का अधिकारी जेपीएससी को है ?
खंडपीठ की ओर से तय तीन बिंदुओं पर वृहद पीठ में सुनवाई होगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मनोज टंडन, अमृतांश वत्स और श्रेष्ठ गौतम और जेपीएससी की ओर सेअधिवक्ता सुनील कुमार एवं प्रिंस कुमार सिंह ने पक्ष रखा।
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि जेपीएससी और जेएसएससी ने दारोगा, दंत चिकित्सक, रेडियो आपरेटर सहित अन्य पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें आरक्षित श्रेणी के उन अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में शामिल कर दिया गया, जिनका जाति प्रमाण पत्र विज्ञापन में निर्धारित तिथि के बाद जारी किया गया है।
इन अभ्यर्थियों ने अपनी श्रेणी में निर्धारित कट आफ मार्क्स से ज्यादा अंक प्राप्त किया है। पूर्व में एकल पीठ ने इनकी याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके बाद सभी हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
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