आरक्षण मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्य बंटवारे के बाद कर्मी को ही नहीं, बल्कि उनके बच्चों को भी मिलेगा आरक्षण का लाभ

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के एक मामले में झारखंड हाईकोर्ट के वृहद पीठ के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि आरक्षण का लाभ सिर्फ कैडर बंटवारे में कर्मी को ही नहीं मिलेगा, बल्कि उनके बच्चों को भी एडमिशन और नियुक्ति में इसका लाभ मिलेगा। लेकिन यह लाभ किसी एक राज्य (झारखंड या झारखंड) में ही लिया जा सकेगा। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश वृहद पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया। इस मामले में 31 जुलाई को सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वादी पंकज कुमार को छह हफ्ते के अंदर नियुक्त प्रदान की जाए। साथ ही उनकी वरीयता को बरकरार रखते हुए वेतन एवं भत्ते भी दिए जाएं। इसके अलावा इसी मामले के साथ टैग पुलिस कांस्टेबल नियुक्ति के मामले में कोर्ट ने कहा कि इसमें वादी की कोई गलती नहीं है। बिहार के प्रमाण पत्र ही उनकी नियुक्ति की गई। फिर बाद में हटाया गया। इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। अदालत ने संविधान की धारा-142 का अधिकार का प्रयोग करते हुए कांस्टेबलों को दोबारा नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 24 फरवरी 2020 काे झारखंड हाईकोर्ट का फैसला कानून में अव्यावहारिक है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है। पीठ ने कहा कि सिद्धांत के आधार पर हम अल्पमत फैसले से भी सहमत नहीं हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति बिहार या झारखंड दोनों में से किसी एक राज्य में आरक्षण के लाभ का हकदार है, लेकिन दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता है और अगर इसे अनुमति दी जाती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 341 (1) और 342 (1) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।

सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से झारखंड हाईकोर्ट के बहुमत के फैसले का समर्थन करते हुए बताया गया कि दूसरे राज्य के मूल निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। वादी पंकज कुमार के अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने बताया कि आरक्षित श्रेणी का व्यक्ति बिहार या झारखंड किसी भी राज्य में लाभ का दावा कर सकता है लेकिन नवंबर 2000 में पुनर्गठन के बाद दोनों राज्यों में एक साथ लाभ का दावा नहीं कर सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार के निवासी आरक्षित श्रेणी के सदस्यों के साथ झारखंड में सभी वर्गों के लिए आयोजित चयन प्रक्रिया में प्रवासी के तौर पर व्यवहार किए जाएंगे और वे आरक्षण के लाभ का दावा किए बगैर उसमें शामिल हो सकते हैं। दरअसल, वादी अनुसूचित जाति के सदस्य पंकज कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। राज्य सिविल सेवा परीक्षा चयन होने के बाद भी उन्हें इस आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया गया था कि वह बिहार के पटना के स्थायी निवासी हैं।

बता दें कि झारखंड हाईकोर्ट ने दूसरे राज्य के एसटी, एससी व ओबीसी कैटेगरी के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ देने के मामले में 24 फरवरी 2020 को 2:1 के अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता बिहार व झारखंड दोनों में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता और इस प्रकार वह राज्य सिविल सेवा परीक्षा के लिए आरक्षण का दावा नहीं कर सकता। हालांकि वृहद पीठ में शामिल जस्टिस एचसी मिश्र ने बहुमत के विपरीत फैसला सुनाते हुए कहा था कि आरक्षण का लाभ मिलेगा।

दरअसल, वादी का जन्म 1974 में हजारीबाग जिले में हुआ था। 15 वर्ष की आयु में वर्ष 1989 में वह रांची चले आए। 1994 में रांची के मतदाता सूची में भी उनका नाम था। 1999 में एससी कैटेगरी में सहायक शिक्षक के रूप में वे नियुक्त हुए। सर्विस बुक में बिहार लिख दिया गया। बिहार बंटवारे के बाद उनका कैडर झारखंड हो गया। जेपीएससी में प्रतियोगिता परीक्षा में एससी कैटेगरी में आवेदन किया, लेकिन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं देकर सामान्य कैटेगरी में रख दिया गया।

वहीं, सिपाही पद से हटाए गए वादी रंजीत कुमार व राज्य सरकार की ओर से दायर अलग-अलग अपील याचिकाओं पर जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान दो अन्य खंडपीठों के अलग-अलग फैसले की बात सामने आयी थी। वर्ष 2006 में कविता कुमारी कांधव व अन्य बनाम झारखंड सरकार के मामले में जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। वहीं वर्ष 2011 में तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने मधु बनाम झारखंड सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसके बाद में मामले को लॉर्जर बेंच में भेजा गया।

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