आरक्षण मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्य नहीं तय कर सकते सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण

New Delhi: Reservation News सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें शीर्ष अदालत से पांच मई के बहुमत के एक निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया था। उस फैसले में व्यवस्था दी गई थी कि संविधान में 102वें संशोधन के बाद नौकरियों और दाखिलों के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने की शक्ति राज्यों के पास नहीं रही है। जबकि केंद्र ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा था कि राज्यों को अपने यहां निश्चित रूप से ऐसा करने का अधिकार है।

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस. रवींद्र की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि हमने पांच मई के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका का अध्ययन किया है। पुनर्विचार याचिका का जो आधार बताया गया है, वह उस सीमित आधार के दायरे में नहीं आता जिसकी बुनियाद पर पुनर्विचार याचिका पर विचार किया जा सके।

पीठ ने कहा कि हमें पुनर्विचार याचिका पर विचार करने का कोई पर्याप्त आधार दिखाई नहीं देता। पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट की साईट पर अपलोड आदेश के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने मामले की खुली अदालत में सुनवाई के केंद्र के आवेदन को भी खारिज कर दिया। इस मामले पर पांचों न्यायाधीशों ने 28 जून को ‘चैंबर’ में विचार किया था।

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यहां यह उल्लेखनीय है कि जस्टिस भूषण चार जुलाई को सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन उन्होंने अपनी मां के अंतिम संस्कार के बाद होने वाली रस्मों में शामिल होने के लिए बुधवार को ही शीर्ष अदालत से विदाई ले ली थी। पिछले हफ्ते उनकी मां का निधन हो गया था। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 13 मई को एक बयान जारी कर कहा था कि केंद्र ने शीर्ष अदालत के पांच मई के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मराठाओं को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को पांच मई को बहुमत से रद कर दिया था और आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा तय करने संबंधी 1992 के मंडल फैसले को वृहद पीठ के पास भेजने से इन्कार कर दिया था।

पीठ ने 3:2 के बहुमत वाले निर्णय में कहा था कि संविधान का 102वां संशोधन केंद्र को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो (एसईबीसी) की घोषणा करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है क्योंकि केवल राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं। हालांकि पीठ के पांचों जजों ने संविधान संशोधन को वैध करार दिया था और कहा था कि संघीय राजनीति को प्रभावित नहीं किया और न ही संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन किया है।

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