आरक्षण मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने रद की ज्यादा गरीबों को प्राथमिकता देने की अधिसूचना, कहा- पहचान का आधार सिर्फ आर्थिक नहीं हो सकता

New Delhi: Reservation Case हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण का लाभ देने में सिर्फ आर्थिक आधार को मानक मानने को एक बार फिर नकार दिया है। अदालत ने सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश में ओबीसी की छह लाख रुपये सालाना आय वाली नान क्रीमीलेयर में तीन लाख रुपये सालाना आय वाले ज्यादा गरीब वर्ग को आरक्षण का लाभ देने में प्राथमिकता देने वाली हरियाणा सरकार की अधिसूचना रद कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के बारे में हरियाणा सरकार की 17 अगस्त, 2016 और 28 अगस्त, 2018 की अधिसूचनाओं को रद करते हुए कहा कि इंद्रा साहनी के फैसले में कहा जा चुका है कि पिछड़े वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान सामाजिक, आर्थिक व अन्य आधार पर होगी। पहचान का आधार सिर्फ आर्थिक नहीं हो सकता। हरियाणा सरकार ने सिर्फ आर्थिक स्थिति को आधार बनाकर भारी भूल की है और इसी आधार पर अधिसूचना रद की जाती है।

हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि जिन लोगों को इन अधिसूचनाओं के आधार पर शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिल चुका है या जिन्हें राज्य सेवा में नौकरी मिल चुकी है, उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर इंद्रा साहनी फैसले में तय किए गए क्रीमी लेयर की पहचान के सिद्धांत और हरियाणा के बैकवर्ड क्लासेस (रिजर्वेशन इन सर्विस एंड एडमीशन इन एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स) एक्ट 2016 की धारा 5(2) में तय मानकों के मुताबिक नई अधिसूचना जारी करे।

मानक कहते हैं कि पहचान का आधार सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य होना चाहिए। हरियाणा में ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था तय करने वाला यह अहम आदेश जस्टिस एल नागेश्वर राव व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा हरियाणा व अन्य याचिकाओं का निपटारा करते हुए सुनाया है। हरियाणा सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश में आरक्षण देने के लिए हरियाणा बैकवर्ड क्लासेस (रिजर्वेशन इन सर्विस एंड एडमीशन इन एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स) एक्ट 2016 पारित किया।

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इस कानून की धारा पांच कहती है कि क्रीमी लेयर में आने वाला कोई भी व्यक्ति ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का पात्र नहीं होगा। ओबीसी की क्रीमी लेयर के लोग नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण का दावा नहीं कर सकते। कानून की धारा 5 (2) कहती है कि सरकार सामाजिक, आर्थिक और अन्य किसी आधार पर विचार करते हुए क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर करने की अधिसूचना जारी करेगी।

कानून में मिली इसी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए हरियाणा सरकार ने 17 अगस्त, 2016 को अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया था कि ओबीसी वर्ग के जिन लोगों की सालाना आय तीन लाख रुपये तक होगी उनके बच्चों को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण का लाभ देने में प्राथमिकता दी जाएगी। उनसे बचे कोटे में उन लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा जिनकी सालाना आय तीन लाख से छह लाख तक की होगी। छह लाख से ऊपर की सालाना आय वाले क्रीमी लेयर माने जाएंगे।

इसके बाद ऐसी ही एक अधिसूचना राज्य सरकार ने 28 अगस्त, 2018 को जारी की। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दोनों अधिसूचनाएं रद करने की मांग करते हुए कहा था कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करती हैं। इसमें ओबीसी में ही उप वर्गीकरण करके आरक्षण पाने के अधिकारी एक वर्ग को लाभ से वंचित किया गया है। इंद्रा साहनी फैसले में सिर्फ आर्थिक आधार को पैमाना बनाने की मनाही की गई है।

हरियाणा सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरुण भारद्वाज ने अधिसूचना को सही ठहराते हुए दलील दी कि इसके पीछे सरकार की मंशा ओबीसी आरक्षण का लाभ उस वर्ग के सबसे वंचित तबके तक पहुंचना सुनिश्चित करना था। सरकार को कानून में ऐसा करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलें खारिज करते हुए कहा है कि इंद्रा साहनी के फैसले में कहा गया था कि क्रीमी लेयर तय करने में सोशल एडवांसमेंट मानक होगा। कोर्ट ने अशोक कुमार ठाकुर के फैसले का भी हवाला देते हुए कहा कि 17 अगस्त, 2016 की अधिसूचना इंद्रा साहनी फैसले में दिए गए निर्देशों का खुला उल्लंघन है।

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