Remdesivir black marketing: जांच से ऐसा प्रतीत हो रहा कि एक पुलिस अधिकारी को बचाने के लिए सारी तैयारी की गईः हाईकोर्ट

Ranchi: Remdesivir black marketing झारखंड हाई कोर्ट ने रेमडेसिविर कालाबाजारी मामले की जांच के दौरान ग्रामीण एसपी को सरकारी गवाह नहीं, बल्कि गवाह बनाए जाने पर सवाल उठाया है। अदालत ने कहा कि इस मामले में जांच की पोल खुल रही है। ऐसा लग रहा है कि पुलिस विभाग के एक अधिकारी को बचाने के लिए सारी तैयारी की गई है।

अदालत ने इस मामले में जांच अधिकारी से पूछा किया किसी अधिकारी को इस मामले में सरकारी गवाह बनाया गया है। पहले तो उन्होंने किसी अधिकारी को सरकारी गवाह बनाने से इन्कार किया, लेकिन बाद में उन्होंने इस मामले में रांची ग्रामीण एसपी नौशाद आलम को सरकारी गवाह बनाए जाने की बात कही।

चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने कहा कि यह तो पूरे जांच सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही है। अदालत ने एसआइटी के गठन से संबंधित मूल दस्तावेज सहित जांच की प्रगति रिपोर्ट मांगी है।

सुनवाई के दौरान जांच अधिकारी ने अदालत को बताया कि इस मामले की जांच के दौरान ग्रामीण एसपी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला लेकिन उन्हें सरकारी गवाह बनाया गया है। इस पर अदालत ने पूछा कि ग्रामीण एसपी को किस आधार पर सरकारी गवाह बनाया गया है।

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क्योंकि जब उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला तो उन्हें मात्र गवाह बनाया जा सकता है। क्योंकि सरकारी गवाह उसी को बनाया जाता है, जो उस मामले में शामिल हो और वो जांच में मदद कर सके। अदालत ने कहा कि ऐसा क्यों नहीं माना जाए कि उनको बचाने की सारी कवायद की जा रही है, क्योंकि वे पुलिस विभाग से हैं।

इस पर महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि उन्होंने एसआइटी हेड अनिल पालटा से इस संबंध में बातचीत की है। इस मामले में ग्रामीण एसपी को सरकारी गवाह नहीं, बल्कि मात्र गवाह बनाया गया है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि इस मामले में जांच की पोल खुल रही है। एसआइटी हेड को कुछ और पता और जांच अधिकारी को कुछ और ही पता है।

अदालत ने अगली सुनवाई को भी एसआइटी के हेड अनिल पालटा व जांच अधिकारी को अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया। इस मामले में अगली सुनवाी 15 जुलाई को होगी। हालांकि गुरुवार को ही एसआइटी हेड को कोर्ट में हाजिर होना था, लेकिन उन्होंने निजी काम से राज्य से बाहर का हवाला देते हुए हाजिरी से छूट मांगी थी जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

अदालत ने कहा कि जब इस मामले में की हाई कोर्ट निगरानी कर रहा है, तो जांच से संबंधित किसी भी अधिकारी के तबादले से पहले कोर्ट से अनुमति प्राप्त करना चाहिए थी। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि चार्जशीट एसआइटी की बजाय सीआइडी ने कोर्ट में दाखिल किया है।

दरअसल, महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि दो लोगों को खिलाफ जांच पूरी होने के बाद निचली अदालत में चार्जशीट दाखिल किया गया है। इसके अलावा इस मामले में प्राथमिकी दर्ज किए हुए साठ दिन पूरे हो रहे थे। इसको देखते हुए चार्जशीट दाखिल की गई है।

इस पर अदालत ने कहा कि आपने किसी आरोपी के जमानत लेने के अधिकार को दबाने के लिए जल्दबाजी में चार्जशीट दाखिल की है, ताकि उनसे जमानत की सुविधा न मिल पाए। इस सरकार ने कहा कि अगर आरोपी जेल से बाहर निकाल जाएंगे तो फिर जांच पर सवाल उठाए जाते

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