Promotion: हाईकोर्ट ने झारखंड में प्रोन्नति पर लगी रोक के आदेश को किया निरस्त, चार सप्ताह में प्रोन्नति देने का निर्देश

Ranchi: Promotion झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने राज्य सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसके तहत राज्य के सभी विभागों की प्रोन्नति पर रोक लगाई गई थी। अदालत ने चार सप्ताह में प्रोन्नति से संबंधित अधिसूचना जारी करने का आदेश सरकार को दिया है।

पूर्व में सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने राज्य सरकार द्वारा प्रोन्नति पर लगाई रोक के आदेश को निरस्त करते हुए प्रोन्नति देने का निर्देश दिया है। इसको लेकर राजकिशोर प्रसाद व अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।

याचिका में डिप्टी कलेक्टर से एसडीओ पद पर प्रोन्नति दिए जाने की अनुशंसा के बाद अधिसूचना जारी नहीं करने का मुद्दा उठाया गया था। पिछली सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता सह वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व चंचल जैन ने अदालत को बताया था कि 24 दिसंबर 2020 को राज्य सरकार ने सभी प्रोन्नति पर रोक लगा दी।

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उसके बाद भी कई विभागों में प्रोन्नति की अधिसूचना जारी की गई। लेकिन इस मामले में सरकार वादियों के साथ भेदभाव कर रही है। उक्त आदेश को सरकारी आदेश नहीं माना जा सकता है। न तो यह राज्यपाल का आदेश और न ही प्रोन्नति पर रोक का कोई कारण बताया गया।

यह आदेश एक विभाग के प्रधान सचिव की ओर से जारी किया गया है। इस आदेश पर प्रोन्नति का मामला लंबित नहीं रखा जा सकता है। सरकार की ओर से तीन सदस्यीय समिति का गठन मई 2021 में किया गया है तो उसके बाद की कार्रवाई के आधार पर 24 दिसंबर 2020 के आदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता है।

वादियों को डीपीसी (विभागीय प्रोन्नति कमेटी) के समक्ष योग्य पाए गए हैं, इसलिए यह उनके मौलिक अधिकार का मामला बनता है। जिससे उन्हें वंचित नहीं रखा जा सकता है। इस पर सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा था सरकार वर्तमान विधानसभा सत्र में प्रोन्नति से संबंधित विधेयक लाने जा रही है, जिसमें प्रोन्नति का मामला स्पष्ट हो जाएगा।

इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा था कि जब महाधिवक्ता ने पूर्व में स्वयं कोर्ट को आश्वस्त किया था कि सरकार प्रोन्नति पर लगी रोक के आदेश को वापस लेगी। तो ऐसी स्थिति में सरकार के इस पक्ष को सही नहीं माना जा सकता है। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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