टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत पर फैसला सुरक्षित

मुंबई। आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित मामले में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब को बंबई हाईकोर्ट से तत्काल कोई राहत नहीं मिली है। अदालत ने उनकी अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि अदालत ने कहा कि इस बीच नियमित जमानत के लिए प्रार्थी सत्र अदालत का रुख कर सकते हैं।

हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कार्णिक की पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि अभी आदेश पारित करना संभव नहीं होगा। अर्नब के वकील हरीश साल्वे ने अंतरिम राहत के तौर पर उनकी रिहाई का अनुरोध किया था लेकिन हाईकोर्ट ने ऐसा करने में असमर्थता व्यक्त की। अदालत ने कहा कि हम यथाशीघ्र आदेश पारित करेंगे। इस मामले के लंबित रहने के दौरान आप या अन्य आरोपियों पर नियमित जमानत के लिए निचली अदालत जा सकते हैं।

पीठ ने कहा कि अगर जमानत याचिका दाखिल की जाती है तो सत्र अदालत उस पर चार दिन के अंदर फैसला करेगी। हाईकोर्ट टीवी पत्रकार गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों फिरोज शेख और नितीश सारदा की अंतरिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने तीनों को चार नवंबर को आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां की 2018 में खुदकुशी के सिलसिले में गिरफ्तार किया था।

इसे भी पढ़ेंः प्रोन्नति मामलाः हाईकोर्ट ने कहा- रांची विश्वविद्यलाय जेपीएससी को भेजे प्रोन्नति की अनुशंसा

दोनों ने कथित तौर पर आरोपियों की कंपनियों द्वारा बकाए का भुगतान नहीं किये जाने पर खुदकुशी कर ली थी। याचिका में जांच को रोकने और एफआईआर को रद्द किए जाने की भी मांग की गई है। अदालत ने शनिवार को सिर्फ अंतरिम जमानत पर दलीलें सुनीं और कहा कि वह दिवाली के अवकाश के बाद दस दिसंबर को एफआईआर रद्द करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगी।

जस्टिस शिंदे ने कहा कि हाईकोर्ट पर पहले से ही नियमित जमानत याचिकाओं का भार है। हम सत्र अदालत के प्राधिकार को कमतर नहीं करना चाहते जो नियमित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई में सक्षम है। गोस्वामी ने अपनी जमानत याचिका में आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान उन पर और परिजनों पर पुलिस द्वारा हमला किया गया और उनके बाएं हाथ पर छह इंच का घाव हुआ है और उनकी रीढ़ की हड्डी में भी गंभीर चोट आई है।

हालांकि उनके वकील ने जिरह के दौरान ये आरोप अदालत में नहीं उठाए। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि पूर्व में बंद हो चुके इस मामले को फिर से खोलने के लिए नई सामग्री थी। देसाई ने कहा कि आरोपियों को पहले सत्र अदालत के पास जाना चाहिए था और अगर वे ऐसा करते, तो पुलिस स्थगन नहीं मांगती और सुनवाई लंबी नहीं होती।

देसाई ने यह दलील भी दी कि सिर्फ इसलिए कि अलीबाग पुलिस ने ए समरी रिपोर्ट, मामले को बंद करते हुए दाखिल की थी। इसका यह मतलब नहीं होता कि मामले में कोई नई जांच नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि ए समरी का यह मतलब नहीं होता कि अपराध नहीं हुआ या मामला गलत है। इसका सिर्फ यह मतलब है कि जांच पूरी नहीं हो सकी। यह एक मामला है जिसमें फिर से जांच हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि आगे की जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट से मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

Rate this post
Share it:

Leave a Comment