हाईकोर्ट का निर्देश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नरों का सर्वे कर दिलाए राशन व आधार कार्ड

Jabalpur: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि राज्य में रहने वाले ट्रांसजेंडर्स का पैरा लीगल वालंटियर्स के जरिए सर्वे कराया जाए। इसके बाद इन ट्रांसजेंडर्स की ट्रांसजेंडर कार्ड, राशन व आधार कार्ड दिलाने में मदद की जाए। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की पीठ ने राज्य सरकार से ट्रांसजेंडर्स की मदद के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मांगी।

अदालत ने सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए गए कि इस दौरान वे ट्रांसजेंडर्स को अनाज सहित अन्य सहायता दिलाना सुनिश्चित करें। इंदौर निवासी ट्रांसजेंडर नूरी व अन्य की ओर से अधिवक्ता शन्नो शगुफ्ता खान ने यह जनहित याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि 2011 की जनसंख्या के अनुसार राज्य भर में 29000 से अधिक किन्नर हैं। समाज की मुख्य धारा से अलग होने के चलते इनकी आजीविका का वैसे ही भिक्षाटन के अलावा अन्य जरिया नहीं है।

ऐसे में कोरोना संक्रमण के चलते हुए लाकडाउन से इनकी हालत बहुत खराब हो गई है। राशन सहित अन्य सुविधाओं से वंचित हैं। कोई सरकारी मदद भी इन्हें नहीं मिल रही। लाकडाउन के चलते ये अपना परंपरागत काम भी नहीं कर पा रहे हैं। उसके सहित इंदौर निवासी किन्नर सन्ध्या (संदीप कुमार) ने 30 अन्य किन्नरों की ओर से पिछले साल जनहित याचिका दायर की थी।

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20 जुलाई 2020 को मप्र हाई कोर्ट ने प्रदेश में रहने वाले ट्रांसजेंडर्स (किन्नरों) को कहा कि कोई भी समस्या होने पर वे सम्बंधित कलेक्टर के समक्ष जा सकते हैं। सरकार को कहा गया कि ऐसी शिकायत आने पर विधिवत उसका निराकरण किया जाए। अधिवक्ता खान ने कहा कि किन्नर समुदाय दो वर्ग में विभाजित है। एक डेरा से जुड़े, जो टोली में बधाई देने का काम करते हैं। यह आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग है।

जबकि दूसरा तबका घरों में असंगठित रूप से रहकर, नाच गाकर अपना पोषण करने वाले है। कोरोनाकाल में दूसरे वर्ग के किन्नरों के हालात बहुत खराब हो गए हैं। सरकार की ओर से महज 4 किग्रा अनाज प्रतिमाह दिया जा रहा है, जो काफी नहीं है। इसके लिए भी राशन और आधार कार्ड मांगे जा रहे हैं। जबकि अधिकांश किन्नरों के राशन, आधार कार्ड नहीं बन सके हैं।

इसी वजह से उन्हें ट्रांसजेंडर्स कार्ड व अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उपमहाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत लाभुकों की सूची में किन्नरों को भी शामिल कर लिया है। इन्हें भी खाद्यान्न दिया जा रहा है। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वे किन्नरों का सर्वे कराएं।

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