Liquor Policy: थोक शराब बिक्री नीति मामले में बहस पूरी, हाईकोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

Ranchi: Liquor Policy झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में थोक शराब बिक्री के लिए सरकार की नई नीति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप करने वालों की ओर से कहा गया कि राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 से वर्ष 2021 तक एक्साइज एक्ट की धारा 89 (3) के अनुसार पूर्व प्रकाशन की कार्रवाई नहीं की गई है। इसलिए एक लंबे समय अंतराल तक उक्त प्रविधान के लागू नहीं होने के कारण संबंधित प्रविधान को अमल में लाया जा सकता है।

उनकी ओर से मोनेट इस्पात के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया। इसके जवाब में प्रार्थी की ओर से पूर्व महाधिवक्ता सह वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व विकल्प कुमार की ओर से अदालत को बताया गया कि वर्ष 2004 से अधिसूचना जारी किए जाने की तिथि की काल अवधि को पुरानी व बड़ी काल अवधि नहीं कहा जा सकता है।

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एक्साइज एक्ट वर्ष 1915 का कानून है, जो अल्प अवधि में यदि सरकार की ओर से कानून के किसी प्रविधान का पालन नहीं किया जाता है या कानून बनाने में गलती हुई है, तो सरकार कोई लाभ नहीं मिलेगा। उक्त अधिसूचना एक्साइज एक्ट के प्रविधानों के विपरीत है, उसे संपोषित नहीं माना जा सकता है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह भी बताया गया कि मोनेट इस्पात के मामले में वास्तव में जो कानून प्रतिपादित किया गया है। वह वादी के पक्ष में ही है क्योंकि उस मामले में बिहार सरकार के जारी 1962 और 1966 की अधिसूचना को 34 वर्ष की अवधि होने पर भी अमान्य नहीं घोषित किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पारा 167 व 168 के आधार पर मामलों को देखे जाने की प्रार्थना की गई। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि इसको लेकर विकास केडिया की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि झारखंड उत्पाद अधिनियम-1915 की धारा 20-22 और 38 के अनुसार लाइसेंस निर्गत करने के लिए सक्षम पदाधिकारी कलेक्टर होते हैं।

नई नियमावली में उक्त अधिकार उत्पाद आयुक्त को दे दिया गया है। अधिनियम की धारा-90 के अनुसार लाइसेंस निर्गत करने के लिए शर्तों का निर्धारण अथवा नियम बनाने का अधिकार बोर्ड ऑफ रेवन्यू को दिया गया है, लेकिन सरकार ने ही सभी नियम बना दिए हैं। इसलिए उक्त नियमावली असंवैधानिक है जिसे निरस्त किया जाना चाहिए।

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