हाईकोर्ट ने कहा- ये कैसा कल्याणकारी राज्य, जहां सालभर काम के बदले मात्र तीन माह का वेतन दिया जाता है

Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने गुमला के कतरी जलाशय (Katari Dam) से विस्थापित एहसानुल्लाह खान को नौकरी देने के मामले में मुख्य सचिव (Chief Secretary) और जल संसाधन सचिव का जवाब सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत सुनवाई कर रही है।

इस दौरान मुख्य सचिव ने कहा कि नियमानुसार अनुकंपा के आधार पर तत्काल नौकरी देने का प्रावधान है। इसके अलावा विज्ञापन के जरिए ही नियुक्ति दी जाती है। अदालत ने कहा कि इस मामले में तीन अन्य विस्थापितों को नौकरी कैसे दे दी गई। क्या उस समय यह नियम सरकार को याद नहीं था।

उनके खिलाफ सरकार अपील में क्यों नहीं गई। जबकि इस मामले में एकल पीठ के विज्ञापन निकालकर नियुक्ति देने के आदेश के खिलाफ सरकार अपील दाखिल की है।अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये कैसा कल्याणकारी राज्य है, जहां पर सालो भर काम लिया जाता है और इसकी पुष्टि विभाग के मुख्य अभियंता भी करते हैं। लेकिन प्रार्थी को केवल तीन माह का वेतन देकर दोहन किया जा रहा है।

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अदालत ने कहा कि अब प्रार्थी की नौकरी करने की उम्र समाप्त होने वाली है। अगर उसे कोर्ट से न्याय नहीं मिलेगा तो फिर उसके पास न्याय पाने का और कौन सा विकल्प बचेगा। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार अपने ही वरीय पदाधिकारियों की बात नहीं मान रही है, तो फिर किसकी बात मानेगी।

प्रार्थी वर्ष 1999 से काम कर रहा है। इस मामले में उमा देवी का केस भी उस पर लागू होता है। उमा देवी के मामले में सरकार ने नियम भी बनाया है कि दस साल से काम करने वालों को रिक्त पदों पर नियमित किया जाएगा। ऐसे में प्रार्थी को नौकरी क्यों नहीं दी गई। इस पर मुख्य सचिव की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।यह है पूरा मामला

जाने क्या है पूरा मामला

अधिवक्ता प्रेम पुजारी राय ने बताया कि कतरी जलाशय के लिए वर्ष 1989-91 में एहसानुल्लाह की आठ एकड़ जमीन ली गई। पुनर्वास नीति के तहत उसे नौकरी और अन्य सुविधाएं दी जानी थी, लेकिन अभी तक उसे नौकरी नहीं दी गई है। उसने हाई कोर्ट में तीन बार याचिका दाखिल की। हर बार अदालत ने सरकार को नौकरी देने पर विचार करने का आदेश दिया गया। लेकिन विभाग ने उसे नौकरी नहीं दी। जबकि पुनर्वास नीति के तहत छह माह में सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए। अब सरकार हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की है।

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