हाईकोर्ट ने कहा- आपराधिक मामले में मिली सजा ही बर्खास्त होने के लिए काफी

Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि जब किसी को आपराधिक मामले में सजा मिल जाती है, तो उसे बिना किसी नोटिस या विभागीय कार्रवाई के भी बर्खास्त किया जा सकता है। इसके बाद अदालत ने प्रार्थी की याचिका को खारिज कर दिया।

इस मामले में हाई कोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने प्रार्थी के खिलाफ राज्य सरकार की कार्रवाई को सही बताया है। अदालत ने पूर्व में दोनों पक्षों की ओर से बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

प्रार्थी सियामनी देवी धनबाद में सहायक शिक्षक के पद कार्यरत थी। 26 साल की सेवा के बाद उन्हें इसलिए बर्खास्त कर दिया गया कि दहेज उत्पीड़न के मामले में निचली अदालत से जून 2014 में उन्हें ढाई साल की सजा सुनाई गई थी।

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इसके बाद विभाग ने उन्हें अक्टूबर 2015 में बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ सियामनी मनी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सरकार के आदेश को चुनौती दी। सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से कहा गया कि इस मामले में बर्खास्त करने से पहले विभाग ने उनका पक्ष नहीं सुना।

उन्हें न तो किसी प्रकार की नोटिस दी गई और न ही उनपर विभागीय कार्रवाई चलाई गई। इस मामले में नैसर्गिक न्याय का पालन नहीं हुआ है। इसलिए राज्य सरकार के आदेश को निरस्त किया जाए। इस पर सरकारी अधिवक्ता सादाब बिन हक ने कहा कि ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने पूर्व में आदेश पारित किया है।

दोनों अदालतों के आदेश में कहा गया है कि जब किसी को आपराधिक मामले में सजा मिलती है, तो बिना नोटिस और शो-कॉज के बर्खास्त किया जा सकता है। अदालत ने सरकार की दलीलों को मानते हुए प्रार्थी की याचिका को खारिज कर दिया।

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